Book Title: Aantardwand
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Hukamchand Bharilla Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ नहीं बदली। तब तो युवावस्था थी व गारंटी न सही, मात्र सम्भावना ही सही, पर आगे तो सारा जीवन पड़ा था और उसके लिए मुझे बहुत कुछ करना था, उस दिन की आर्थिक परिस्थितियों पर विजय पाकर आगामी दिनों की भी पुख्ता व्यवस्था करनी थी, पर आज क्या है ? ___ आज तो मैं इस जीवन की भी समस्त जिम्मेदारियों से बलात् मुक्त कर दिया गया हूँ और अब स्वयं मेरी अपनी ही निगाह में अपने इस वर्तमान जीवन का कोई भी भविष्य नहीं है, यदि भविष्य कुछ हो सकता है तो मात्र पुनर्जन्म में ही सम्भव है, वह आत्मा की अनादि-अनंतता के स्वरूप में ही छुपा है और अब भी अगर मैं अपने भविष्य के प्रति उतना ही सतर्क हूँ तो मुझे आत्मा की अजर-अमरता का नि:शंक निर्धारण कर आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होना चाहिए, पर मैं स्वयं ही नहीं जानता कि आज की इस गफलत को क्या नाम दूँ, बुरी होनहार के अतिरिक्त और क्या हो सकता है, जो मुझे उक्त मार्ग पर चलने से रोकता है। ___सारा दिन तो धूल-माटी में अटका रहता हूँ, कहीं किसी फूल-पत्ती में प्रकृति का सच्चा सौन्दर्य नजर आता है व उसकी सम्भाल में लग जाता हूँ, उसकी एक-एक शाख को सम्भालता हूँ, एक-एक पत्ती को सहेजता हूँ और कभी घर के साधारण से सामान पर चढ़ी धूल की महीन-सी पर्त भी मुझे विचलित कर देती है और मानो मैं समर्पित ही हो जाना चाहता हूँ, अपने घर में से धूल के उन्मूलन के लिए; परन्तु परमशुद्ध, अबंधस्वभावी आत्मा पर अनादि से चढ़ रही कर्मरज का मुझे विचार ही नहीं आता, वह कभी मेरी चिन्ता व चिन्तन का विषय ही नहीं बनती। जिसप्रकार हम अवकाश के दिनों में परिवार सहित घूमने के लिए बम्बई जाते हैं, तब जाने से पूर्व ही इन्तजाम कर लेते हैं कि बम्बई में जाकर कहाँ ठहरेंगे, क्या खायेंगे, कहाँ-कहाँ घूमेंगे, किस-किससे मिलेंगे इत्यादि व इन सब कामों के लिए आवश्यक सामग्री का इन्तजाम करके चलते हैं। महीनों पूर्व ट्रेन का आरक्षण करवाते हैं व इच्छित तारीख को - अन्तर्द्वन्द/30

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52