Book Title: Aantardwand
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Hukamchand Bharilla Charitable Trust

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Page 30
________________ उस दिन रामू गया, सो गया। उसके बाद आज तक किसी को भी मालूम नहीं कि उसका क्या हुआ ? एक दिन वह था, जब रामू के बिना घर का पत्ता भी नहीं हिलता था। घर में कोई भगवान का नाम ले या न ले पर रामू का नाम दिन में सैंकड़ों दफे लिया जाता था । यदि चार बार आदेश दिये जाते थे तो दश बार चिरौरियाँ भी की जाती थीं, पर आज उसे कोई याद भी नहीं करता है। मानो वह दुःस्वप्न जीवन में कभी आया ही न था । आज उसकी जगह गोपाल ने ले ली है। जब से रामू घर में आया था, तब से आज तक उसके साथ घटित होनेवाली हर घटना का मैं मूक, किन्तु जागरुक साक्षी बना रहा। मैं हर चीज के मायने बड़ी अच्छी तरह समझता था, पर मैंने यह सब बदलने की कोशिश कभी नहीं की। यह सत्य है कि मुझे स्वयं यह सब अच्छा नहीं लगता था और शायद यदि स्वयं मुझे ही इस व्यवहार का संचालन करना होता तो मैं कर भी नहीं पाता; तथापि सब कुछ मेरी मौन सहमति से चलता रहा। हालांकि हर घटनाक्रम पर मेरी पैनी निगाह रहती थी और सबकुछ ठीक-ठाक चलता देख, मैं उस सबसे अनभिज्ञ दिखने का ही प्रयास करता । हाँ कभी - कभी किसी क्षणिक भावावेशवश कोई उसके प्रति अतिरिक्त संवेदनशील हो उठता, कृपावन्त हो जाता तो अति संक्षेप में ही, मोह तजने की प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रेरणा देकर मैं तत्काल ही उससे विमुख हो लेता, ताकि कोई मेरे इस योगदान का नोटिस भी न ले सके। मैं इसीप्रकार काजल की कोठरी में किसी तरह सावधानीपूर्वक बचतेबचाते एक शुभ्र व धवल जीवन जीता रहा। यूँ तो मेरे जीवन का अनुभव बोलता है कि किसी का मनोगत छुपता नहीं, प्रगट हो ही जाता है। किसी का कुछ जल्दी या किसी का कुछ देर से । यदि कोई समझता है कि दुनिया मुझे सिर्फ उसीरूप में देख पाई है जैसा कि मैं दिखने की अन्तर्द्वन्द / 18

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