Book Title: Aagam Manjusha N 43 Uttarjjhayan Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ मूलाउ उट्टिया वाडी, जा० ॥१३१॥ अम्भितरया खुभिया. पिउंति य बाहिरा जणा। दिसं भयह मायंगा!, जा० ॥१३२॥ जत्य राया सयं चोरो, भंडिओ य पुरोहिओ। दिसं भयह नायग्या!, जा० ॥१३३॥ अइगयए य सलिए, चेइयथूभगए य वायसे । भित्तीगयए य आयये, सहि ! मुहिओ हु जणो न बुज्झइ ॥१३४॥ तुम एव य अम्म हे ! लवे. मा हु विमाणय जक्वमागयं । जक्खाहइए हु तायए, अनि दाणि विमग्ग ताययं ॥१३५॥ नवमास कुच्छीइ धालिया, पासवणे पुलिशे य महिए।धूयाए गेहिए हडे, सलणए असलणए य मे जायए॥१३६।। सयमेव य लक्व लोविया, अप्पणिआ य वियदि खाणिया। ओवाइयलओ य सि, किं छेला! बेवेत्ति वाससी? ॥१३७॥ कड़ए ते कुंडले य ते, अंजियक्वि ! तिलयते य ते। पवयणस्स उद्वाहकारिए, दुद्दा महि ! कतोऽमि आगया?॥१३८॥राईसरिसवमित्ताणि, परछिदाणि पाससि । अप्पणो बिमित्ताणि, पासंतोऽविन पाससि ॥१३९|| समणोऽसि संजओ असि. बंभयारी ममलेटुकंचणो । हाग्यिवाअओय ने, जिट्टज ! कि ते पडिग्गहे ? ॥१४॥२ अाणामंठवणादविए माउयपय संगहिकए चेव। पजव भावे य तहा सत्तेए इकगा हुंति ॥१४॥णामं ठवणा दविए खिने काले य गणण भावे या निक्वेवो य चउहं गणणसंखाइ अहिगारो॥१४२॥ णामंगं ठवणंग दव्वंग चेव होइ भावंग। एसो खल अंगस्सा णिक्वेवो चउविहो होइ॥१४३॥ गंधगमोसहंग मज्जाउजसरीरजुदंर्ग। एनो इकिफपि य णेगविहं होइ णायव्यं ॥१४४॥ जमदग्गिजड़ा हरेणुअ सबरनियंसणिय सपिण्णायं। रुक्खस्म य बाहिरा तया मडियवासिय कोडि अग्धइ ॥१४५॥ ओमीरहरिवंगणं पलं पलं भहदारुणो करिसो। सयपुष्फाणं भागो भागो य तमालपत्तस्स॥१४६॥ एयं ण्हाणं एवं विलेवणं एस चेव पडवासो। बासवदत्ताइ कओ उदयणमभिधारयंतीए ॥१४॥ दुन्नि य ग्यणी माहिंदफलं च तिण्णि य समूसणंगाई। सरसं च कणयमूलं एसा उदमट्ठमा गुलिआ॥१४८।। एसा उंहरइ कंटुं तिमिरं अवहेडयं सिरोगेगं। तेइज्जग. चाउन्धिग मूमगमप्पावरद्धं च ॥१४९॥ मोलस दक्या भागा चउरो भागा य धाउगीपुष्फे । आढगमो उच्छुरसे मागहमाणेण मजंग ॥१५०॥ एग मुगुंदा तरं एग अहिमाझदास्यं अम्गी। एगं सामलीपंडं बद्धं आमेलओ होइ ॥१५१॥ मीसं उगे य उदरं पिट्टी बाहा य दुनि ऊरू य। एए खलू अटुंगा अंगोवंगाई मेसाई॥१५२॥ जाणावरण पहरणे जदे कुसलनणं च नीइ । दक्वनं ववसाओ सरीरमागेग्गया चेव ॥१५३॥ भावंगपि य दुविहं सुअमंग चेव नोसुयंगं च । सुयमंगं बारसहा चउविहं नोसुअंगं च ॥१५४॥ माणुस्सं धम्मसुई सद्धा नवसंजमंमि विरियं च। एए भावंगा खलु दुलभगा हुंति संसारे॥१५५॥ अंग दस भाग भेा अवयवा सगल चुण्ण खंडे अ। देस पएसे पधे साह पडल पजव खिले अ॥१५६॥ दया य संजमे लजा, दुगुल्छाऽछत्रणा इअ। तितिक्खा य अहिंसा य, हिरि एगट्ठिया पया॥१५७॥ माणुस्स खित्त जाई कुल रूवारोग आउयं बुद्धी। सवणुग्गह सद्धा संजमो अलोगंमि दुलाहाई ॥१५८॥ चुालग पासग घने जुए ग्यणे असुमिण चके या चम्म जुगे परमाणू दस दिटुंता मणुअलंभे॥१५९॥ आलस्स मोहऽवना थंभा कोहा पमाय किविणत्ता। भय सोगा अनाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ॥१६॥ | एएहिं कारणेहि लदण सुदाईपि माणुस । न लहइ सुई हिअकारि संसारुत्तारिणि जीवो ॥१६१॥ मिच्छादिट्ठी जीवो उवह परयणं न सहहइ । सदहइ असम्भावं उवढं वा अणुवइ8 ॥१६२॥ सम्मदिट्टी जीवो उवइट्ट पक्यणं तु सद्दहइ। सहहइ असम्भावं अणभोगा गुरुनिओगा वा ॥१६३॥ बहुरयपएसअवत्तसमुच्छ दुगतिगअबद्धिगा चेव। एएसि निग्गमणं वुच्छामि अहाणपत्रीए ॥ १६४ ॥ बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। आत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ ॥१६५॥ गंगाओ दोकिरिया छलुगा तेरासिआण उप्पत्ती। थेग य गुट्टमाहिल, पुट्टमबद्ध परूविति॥१६६॥ जिट्ठा सुदंसण जमालि अणुज सावस्थि तिंदग़जाणे। पंच सया य सहस्सं ढंकेण जमालि मनणं ॥१६७॥ गयगिहे गणसिलए वमु चउ. दमपव्यि तीसगुत्ताओ। आमलकप्पा नयरी मित्तसिरी कूरपिंडादि ॥१६८॥ सियवियपोलासाढे जोगे तदिवसहिययसले य। सोहम्मि नलिणगुम्मे रायगिहे पुरि य बलभाहे ॥१६९॥ मिहिलाए लापिडघरे महगिरि कोडिन आसमित्तो आणेउणमणप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य॥१७०॥ नइखेडजणच उलग महगिरि घणगत अजगंगे या किरिया दो रायगिहे महातवोतीर म. णिनाए ॥१७१॥ पुरिमंतरंजि भुयगुह बलसिरि सिरिगुत्त रोहगुत्ते या परिवाय पुट्टसाले घोसण पडिसेहणा वाए ॥१७२॥ विच्छ्य सप्पे मूसग मिगी वराही य कागि पोयाई। एयाहिं विजाहिं मा उ परिवायगो कसलो॥१७३॥ मोरिय नउलि विराली वग्घी सीही य उलगि ओवाई। एयाओ विजाओ गिव्ह परियायमहणीओ॥१७॥दसपुरनगरुच्छुघरे अजरक्खिय पुसमिननियगं च। गुट्टामाहिल, नव अट्ठ सेसपुच्छा य विझस्म ॥१७५॥ पुट्टो जहा अबद्धो कंचुइणं कंचुओ समोइ । एवं पुट्टमवदं जीवं कम्मं समोड़ ॥१७६॥ पञ्चक्खाणं मेयं अपरिमाणेण होइ का. यञ्च । जेसिं तु परीमाणं तंदुझु होइ आसंसा॥१७॥ रहवीरपुरं नयरं दीवगमुजाण अज्जकण्हे अ। सिवभूइस्सुवहिमि पुच्छा थेराण कहणा य॥१७८॥ अ०३॥ नामंठवणपमाओ दधे भावे अ हाइ नायबो । एमेव अप्पमाओ चउनिहो होइ नायबो॥१७९॥ मज बिसय कसाया निहा विगहा य पंचमी भणिया। इय पंचविहो एसो होइ पमाओ य अपमाओ॥१८०॥ पंचविहो अ पमाओ इहमायणमि अप्पमाओ या वणिजए उ जम्हा तेण पमायप्पमायंति॥१८१॥ उत्तरकरणेण कयं जं किंची संखयं तु नायव्यं । सेसं असंखयं खलु असंखयस्सेस निजुत्ती॥१८२॥ ९३५५ 12 श्री उत्तराध्ययन नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर ASPage Navigation
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