Book Title: Aagam Manjusha N 43 Uttarjjhayan Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 9
________________ ९३५८ 1 1 चेइए नायओ पहिअकित्ती । आमंतेउं समणे कहेइ भयवं महावीरो ॥ २८६॥ अट्ठविहकम्ममहणस्स तस्स पगईविसुद्धलेसस्स । अट्ठावए नगवरे णिसीहिए मिडियट्टस्स ॥२८७॥ उसभस्स भरपिउणो तेलुकपगासनिग्गयजसस्स जो आरोढुं बंदइ चरिमसरीरो अ सो साहू ॥ २८८॥ साहुं संवासेई य असाहुं किर न संवसावेइ। अह सिद्धपत्रओ सो पासे वेयसिहरस्स ॥ २८९ ॥ चरिमसरी साहू आरुहइ नगबरं न अन्नोति एयं तु उदाहरणं कासीअ तहिं जिणवरिंदो ॥ २९० ॥ सोऊण तं भगवओ गच्छइ तहिं गोजमो पहिअकित्ती आरुहई तं नगवरं पडिमाओ वंदइ जिणाणं ॥ २९९ ॥ अह आगओ सपरिसो सबिट्टीए तहिं तु वेसमणो। वंदित्तु चेइयाई अह बंदइ गोअमं भयवं ॥ २९२ ॥ अह पुंडरीअनायं कहेइ तहिं गोयमो पहिअकित्ती । दसमस्स य पारणए पव्वावेसी कोडिनं ॥ २९३ ॥ तस्स य वेसमणस्सा परिसाए सुरवरो पयणुकम्मो तं पुंडरीयनायं गोयमकहिअं निसामेइ ॥ २९४ ॥ घित्तॄण पुंडरीअं वग्गुविमाणाओ सो चुओ संतो तुंबवणे धर्णागिरिस्स अज्जसुनंदासुओ जाओ ॥ २९५ ॥ दिने कोडिने या सेवाले चेव होइ तइए य इकिकस्स य तेसि परिवारो पंच पंच सया ॥ २९६ ॥ हेहिलाण चउत्थं मज्झि हाणं तु होइ छहं तु । अट्टममुवरिडाणं आहारो तेसिमो होइ ॥ २९७ ॥ कंदाई सचित्तो हिद्विद्वाणं तु होइ आहारो। बीआणं अवित्तो तइआणं सुकसेवालो ॥ २९८ ॥ तं पासिऊण इट्टि गोयमरिसिणो तओ तिवग्गावि। अणगारा पव्वइआ सम्परिवारा विगयमोहा ॥ २९९ ॥ एगस्स खीरभोअणहेऊ नाणुप्पया मुणेयवा। एगस्स परिसादंसणेण एगस्स य जिणंमि ॥ ३०० ॥ केवलिपरिसं तत्तो वयंता गोयमेण भणिआ य । इउ एह वंदह जिणं कयकिश्च जिणेण सो भणिओ ॥ ३०१ ॥ सोऊण तं अरहओ हियएणं गोयमोऽवि चिंतेइ नाणं मे न उपजह भणिओ य जिषेण सो ताहे ॥ ३०२ ॥ चिरसंस चिरपरिचिअं चिरमणुगयं च मे जाण । देहस्स य भेयंमि य दुष्णिवि तुला भविस्सामो ॥ ३०३ ॥ जह मन्ने एअम अम्हे जाणामु खीणसंसारा तह मने एअमहं विमाणवासीवि जाणंति ॥ ३०४ ॥ जाणगपुच्छं पुच्छइ अरहा किर गोयमं पहिअकित्ती किं देवाणं वयणं गिज्झं आतो जिणवराणं ? ॥ ३०५ ॥ सोऊण तं भगबओ मिच्छायारस्स सो उबट्ठाइ तनीसाए भयवं सीसाणं देइ अणुसिद्धिं ॥ ३०६ ॥ परियडियलावण्णं चलंतसंधिं मुयंतबिंटागं पत्तं च वसणपत्तं कालप्पतं भणइ गाहं ॥३०७॥ जह तुम्भे तह अम्हे तुम्भेहि अ होहिहा जहा अम्हे अप्पाहेइ पडतं पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥ ३०८ ॥ नवि अस्थि नवि अ होहि उछावो किसलपंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस क्या भवियजणविवोहणडाए ॥ ३०९ ॥ बहुए सुय पूजाए य तिण्डंपि चउकओ य निक्खेवो। दशबहुगेण बहुगा जीवा तह पुग्गला चेव ॥ ३१० ॥ भावबहुएण बहुगा चउदस पुत्रा अणतगमजुत्ता। भावे खओवसमिए स्वइयंमि य केवलं नाणं ॥ ३११ ॥ दव्वसुय पोंडयाइ अहवा लिहियं तु पुत्थयाईसुं। भावसुयं पुण दुविहं सम्मसुयं चैव मिच्छयं ॥ ३१२ ॥ भवसिद्धिया उ जीचा सम्मदिट्टी उ जं अहिज्जति। नं सम्मसुएण सुयं कम्मट्ठविहस्स सोहिकरं ॥ ३१३ ॥ मिच्छदिट्ठी जीवा अभव्यसिद्धी य जं जहिजति । तं मिच्छसुरण सुर्य कम्मादाणं च तं भणियं ॥ ३९४ ॥ ईसरतलवरमाडंविआण सिवईदखंदविण्हूणं जा किर कीरइ पूआ सा पूआ दव्वओ होई ॥३१५॥ तित्थयरकेवलीणं सिद्धायरिआण सव्वसाहूणं जाकिर कीरइ पूआ सा पूआ भावओ होइ ॥ ३९६ ॥ जे किर चउदसपृथ्वी सव्वक्खरसन्निवाइणो निउणा । जा तेर्सि पूआ खलु सा भावे तीइ अहिगारो ॥३१७॥ अ. ११ ॥ नामं ठवणादविए० ॥ ३१८॥ जाणगसरीरभविए० ॥३१९॥ हरिएसनामगो वेअंतो भावओ अ हरिएसो। तत्तो समुट्टियमिणं हरिएसिजति अज्झयणं ॥ ३२० ॥ पुण्वभवे संखस्स उ जुबरनो अंतिअं तु पवज्जा जाईमयं तु काउं हरिएसकुलमि आयाओ ॥ ३२१ ॥ महराए संखो खलु पुरोहिअसुओ अ गयउरे आसी। दढण पाडिहेरं हुयवहरत्थाइ निक्खतो ॥ ३२२|| हरिएसा चंडाला सोवाग मयंग बाहिरा पाणा । साणधणा य मयासा सुमाणवित्तीय नीया य ॥ ३२३॥ जम्मं मयंगतीरे वाणारसिगंडितिंदुगवणं च कोसलिएसु सुभद्दा इसिवंता जनवाडंमि ॥ ३२४॥ बलकुट्टे बलकोट्टो गोरी गंधारि सुविणग वसंतो। नामनिरुत्ती उणसप्प संभवो दुदुहे बीओ ॥ ३२५ ॥ भहएणेव होअव्वं, पावह महाणि भद्दज। सविसो हम्मए सप्पो, भेरुंडो तत्थ मुम्बइ ॥ ३२६ ॥ इत्थीण कहित्थ बहई, जणवयरायकहित्थ वहई। पडिगच्छह रम्म बिंदुअं, अइसहसा बहुमुंडिए जणे ॥ ३२७॥ अ. १२ ॥ चित्ते संभूमि अ निक्खेवो चउकओ दुहा दब्बे आगमनोआगमओ नोआगमओ अ सो तिविहो ॥३२८॥ जाणगसरीरभविए तव्वतिरिते य सो पुणो तिविहो। एगभविअ बढाऊ अभिमुहओ नामगोए य ॥ ३२९ ॥ चित्तेसंभूआउं वेअंतो भावओ अ नायो। तत्तो समुद्दिअमिणं अज्झचित्तसंभूयं ॥ ३३० ॥ सागेए चंडवडिंभयस्स पुत्तो अ आसि मुणिचंदो। सोऽवि अ सागरचंदस्स अंतिए पञ्चए समणो ॥ ३३१॥ तव्हाछुहाकिलंतं समणं दडूण अडविनीतं । पडिग्रहणाय बोही पत्ता गोवालपुत्तेहिं ॥ ३३२ ॥ तत्तो दुनि दुगुंछं काउं दासा दसन्नि आयाया दुखि अ उसुआरपुरे अहिगारो बंभदतेणं ॥ ३३३ ॥ राया य तत्थ बंभो कहओ तइओ कणेरदत्तोति । राया य पुष्कचूलो दीहो पुण होइ कोसलिओ ॥ ३३४ ॥ एए पंच वयंसा सबै सहदारदरिसिणो भोचा। संवच्छरं अणूणं वसंति इकिकरजंमि ॥ ३३५ ॥ गया य बंभदत्तो धणुओ सेणावई अ वरघणुओ इंदसिरी इंदजसा इन्दुवसु चुलणि देवीओ ॥ ३३६ ॥ चित्ते अ विज्जुमाला विजुमई चित्तसेणओ भहा। पंथग नागजसा पुण कित्तिमई कित्तिसेणा य १३५५ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर

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