Book Title: Aagam Manjusha N 43 Uttarjjhayan Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ हॉति खलंका तिक्वमिउचंडमहविजा ॥४९५॥ जे किर गुरुपडिणीआ सबला असमाहिकारगा पाचा । अहिगरणकारगऽप्पा जिणवयणे ते किर खलंका ॥ ४९६ ॥ पिसुणा परोवतावी भिन्नरहस्सा परं परिभवंति। निविअणिज्जा य सदा जिणवयणे ते किर खलंका ॥४९॥ तम्हा खलंकभावं चइऊणं पंडिएण पुरिसेणं । कायबा होइ मई उज्जुसभावमि भावेणं ॥४९८॥ अ.२७॥ निक्वेवो मुक्खमि (य) चउविहो ॥४९९॥ जाणगसरीरभविए तत्वहरिते अनियलमाईसु । अट्टविहकम्ममुक्खो नायवो भावओ मुक्खो ॥५१०॥ निक्खेवो मग्गंमि (वि) चउबिहो० ॥५०१॥ जाणगसरीरभविए तबइरित्ते अ जलथलाईसुं। भावंमि नाणदसणनवचरणगुणा मुणेयवा ।।५०२॥ निक्खेवो उ गईए चउकओ दुविहो ॥५०३॥ जाणगसरीरभविए तवइरिते अ पुग्गलाईसुं। भावे पंचविहा खलु मुक्खगईए अहीगारो॥५०४॥ मुक्खो मग्गो अगई वणिजइ जम्ह इत्थ अज्झयणे। तं एअज्झयणं नायवं मुक्खमम्गगई॥५०५॥ अ.२८॥ आयाणपएणेयं सम्मत्तपरकमंति अज्झयणं । गुण्णं तु अप्पमायं एगे पुण बीयरायसुयं ॥५०६॥ निक्खेवो अपमाए चउवि०॥५०७॥ जाणगभवियसरीरे तबइरिने अमि. तमाईसु । भावे अन्नाणअसंवराइसु होइ नायवो ॥५०८॥ निक्खेवो असुअंमी चउकओ दुविहो ॥ ५०९॥ जाणगमवियसरीरे तबइरिने असो उ पंचविहो । अंडय बॉडय वालय वागय तह कीडए चेव ॥५१०॥ भावसुअं पुण दुविहं सम्मसु चेव होइ मिच्छसुयं । अहियारो सम्मसुए इहमज्झयगंमि नायचो॥५१॥ सम्मत्तमप्पमाओ इहमज्झयणमि वण्णिओ जेणं। तम्हेयं अज्झयणं णाय अप्पमायसुअं॥५१२॥ अ.२९॥ निक्खेवो (उ) तवंमि चउबिहो०॥५१३॥ जाणगभक्यिसरीरे तवझरिते अ पंचतवमाई । भावमि होइ दुविहो बज्झो अम्भितरो चेव ॥ ५१४ ॥ मग्गगईणं दुण्हवि पुत्रुट्टिो चउक्कनिक्खेवो । पगयं तु भावमम्गे सिद्धिगईए उनायचं ॥ ५१५॥ दुविहतवोमग्गगई वन्निजइ जम्ह इत्य अज्झयणे । तम्हा एअज्झयणं तवमग्गगइत्ति नायचं ॥५१६॥ अ.३०॥ निक्खेवो चरणमि (मी) चउचिहो दुविहो य होइ दवंमिाथागमनोआगमओ नोआगमओ य सो तिविहो ॥५१७॥ जाणगसरीरभविए तबहरित गइभिक्खमाईसुं । आचरणे आचरणं भावे चरणं तु णायचं ॥ ५१८ ॥ णिक्खेवो उ विहीए चउबिहो दुविहो य होइ दवंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ यसो तिविहो॥५१९॥ जाणगसरीरभविए तबइरित्ते य इंदियत्थेसुं। भावविही पुण दुविहा संजमजोगो तवो चेव ॥५२०॥ पगयं तु भावचरणे भावविहीए अ होइ नायवं। चाऊण अचरणविहिं चरणविहीए उ जइयचं ॥५२१॥ अ.३१॥निक्खेवो अपमाए चउविहो॥५२२॥ जाणगन्तवइरिते अमजमाईसु। निदा विकह कसाया विसएसु भावओ पमाओ॥५२३॥ नाम ठवणा दविए खित्तद्धा उडू उबरई बसही। संजम पम्गह जोहे अयल गणण संधणा भावे ॥५२४॥ भावप्पमाय पगय वाससहस्सं उग्गं तवमाइगरस्स आयरंतस्स। जो किर पमायकालो अहोरत्तं तु संकलिअं॥५२६॥ वारस वासे अहिए तवं चरंतस्स बदमाणस्स। जो किर पमायकालो अंतमहत्तं तु संकलिअं॥५२७ा जेसि तु पमाएणं गच्छइ कालो निरत्थओ धम्मे। ते संसारमणंत हिंडंति पमायदोसेणं ॥५२८॥ तम्हा खलुप्पमायं चइऊणं पंडिएण पुरिसेणं । दसणनाणचरिते कायवो अप्पमाओ उ॥५२९॥ अ.३२॥ कम्ममि अ निक्खेवो चउबिहो ॥५३०॥ जाणगभवियसरीरे तबइरितं च तं भवे दुविहं । कम्मे नोकम्मे या कम्ममि अ अणुदओ भणिओ॥५३१॥ नोकम्मदवकम्म नायव लेप्पकम्ममाईआभावे उदओ भणिओ कम्मट्टविहस्स नायबो॥५३२॥ निक्खेवो पयडीए चउव्विहो० ॥५३३॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा। कम्मे नोकम्मे या कम्ममि अ अणुदओ भणिओ ॥५३४॥ नोकम्मे दव्वाई गणपाउम्ग मुक्कगाई च। भाचे उदओ भणिओ मूलपयडि उत्तराणं च॥५३५॥ पगइठिई अणुभागं पएसकम्मं च सुटुनाऊणं । एएसिं संवरे खलु खवणे उसयावि जइअव्वं ॥५३६॥अ.३३॥ लेसाणं निक्खेवो चउक्कओ दुविह होइ नायव्यो० ॥५३७॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मा नोकम्मे या नोकम्मे हुंति दुविहा उ॥५३८॥ जीवाणमजीवाण यदुविहा जीवाण होइ नायव्वा । भयमभवसिद्धिआणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा ।।५३९॥ अजीवकम्म णोदव्यलेसा सा दसविहा उनायब्वा। चंदाण य सूराण य गहगणनक्खत्तताराणं ॥५४०॥ आभरणच्छायणादसगाण मणिकागिणीण जालेसा। अजीवदब्बलेसा नायव्वा दसविद्दा एसा ॥५४१॥ जा दव्यकम्मलेसा सा नियमा छब्बिहा उ नायव्वा । किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्हा य सुका य॥५४२॥ दुविहा उ भावलेसा विसुद्धलेसा नहेब अविमुद्धा। दुविहा विसुद्धलेसा उवसमखइआ कसायाणं ॥५४॥ अविसुद्धभावलेसा सा दुबिहा नियमसो उ नायवा। पिजंमि अदोसंमि अ अहिगारो कम्मलेसाए॥५४४॥ नोकम्मदव्वलेसा पओगसा वीससा उ नायव्वा। भावे उदओ भणिओ छण्हं लेसाण जीवेसु ॥५४५॥ अज्झयणे निक्खेवो चउकओ दुविह होइ नायव्यो॥५४६॥ जाणगभवियसरीरं तब्वइरित्तं च पोत्थगाईसुं । अज्झप्पस्साणयणं नायध्वं भावमज्झयणं ॥५४॥ एयासि लेसाणं नाऊण सुहासुहं तु परिणामं । चइऊण अप्पसत्थं पसत्थलेसासु जइअवं ॥५४८ अ.३४॥ अणगारे निक्खेवो उविहो दुविह होइ नायचो० ॥५४९॥ जाणगभवियसरीरे तवहग्नेि अनिण्हगाईसु। भावे सम्मदिट्टी अगारवासा विणिमुको॥५५०॥ मम्गगईणं दुण्हवि पुबुदिट्टो चउक्कनिक्खेवो। अहिगारो भावभग्गे सिद्धिगईए उ नायबो ॥५५१॥ अ.३५॥ निक्खेवो जीवंमि अचउविहो दुबिह होइ नायबो०॥५५२॥ जाणगभवियसरीरे तपाइरित्ते य जीवदवं तु। भावंमि दसविहो खलु परिणामो जीवदवस्स ॥५५३॥ निक्वेवो अ(s)जीवंमी चउत्रिहो दुबिह होइ नायबो० ॥५५४॥ जाणगभवियसरीरे ९३६२११६ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14