Book Title: Aagam Manjusha 43 Mulsuttam Mool 04 Uttarjjhayanam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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तकामो, उदत्तचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिदिगई गओ ॥४४॥ त्ति बेमि, चित्तसंभूइजमवणं १३॥ देवा भपित्ताण पुरे भवमी, केई या एगरिमाणवासी । पुरे पुराणे इसुयारनामे, खाए समिदे | सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु उम्गे (सु दत्ते) सुय ते पसूआ। निधिष्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमयं सरणं पवना ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमार दोऽपि, पुरोहिजो तस्स जसा य पत्ती। विसालकित्ती य तहे.
सुआरो, रायऽत्य देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामचुभयाभिभूया (ए), यहिंविहाराभिणिविट्ठचित्ता। संसारचकस्स विमुक्खणडा, बठूण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ पियपुत्तगा दुधिवि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स। सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिणं तव संजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असज्जमाणा, माणुस्सएसुंजे यावि दिव्वा । मुक्ताभिकसी अभिजायसदा, तातं उपागम्म इमं उदाहु ॥६॥ असासयं बढ़ इमं विहारं, बहुअंतरायं न य दीहमाउं। तम्हा गिहंसी न रई लभामो, आमंतयामो चरिसामु मोणं ॥७॥ अह तायो तत्य मुणीण तेसिं, तबस्स वाघायकर वयासी। इमं वयं वेयविओ वयंति, जहा न होई असुआण लोगो ॥ ८॥ अहिज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिट्टप्प गिहंसि जाया (ए)!। भुवाण भोए सह इस्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणी पसत्था ॥९॥ सोअग्गिणा आयगुर्णिधणेणं, मोहानिला पजलणाहिएण। संत(स)त्तभावं परितप्पमार्ण, लोलु (लाल)पमाणं बहुहा पहुं च॥४५॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणतं, निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहकर्म कामगुणेहिं चेव, कुमारगा ते पसमिक्स वकं ॥१॥ वेआ अधीआ न भवति ताणे, भुत्ता दिया निति तमं तमेणं। जाया य पुत्ता न हबंति ताणं, को नाम ते अणुमनिज एवं? ॥२॥ खणमित्तसुक्खा पहुकालबुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा। संसारमुक्खस्स विपक्खभूजा, खाणी अणत्याण उ कामभोगा ॥३॥ परिवर्यते अनियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे। अन्नप्पमत्ते घणमेसमाणे, पप्पुत्ति मछु पुरिसो जरं च ॥४॥ इमं च मे अस्थि इमं चनत्थि, इमं च मे किच इमं अकिच। त एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हर्रतित्ति कह पमाओ? ॥५॥ धर्ण पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा। तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सच साहीणमिहेव तुज्यं ॥६॥ धणेण किंधम्मधुराहिगारे ?, सयणेण वा कामगुणेहिं वेव।समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिविहारा अभिगम्म भिक्ख ॥ ॥ जहा य अग्गी अरणीउऽसंतो, खीरे घयं तिल्लमहा तिलेसु । एमेव जाया सरीरंमिसत्ता, संमुच्छईनासह नावचिढे ॥८॥ नो इंदियग्गिा अमुत्तभावा, अमुत्तभावा चिय होइ निचो। अज्झत्यहेउं निययऽस्स चो, संसारहेउंचवयंतिपंच॥९॥जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्म. मकासि मोहा।ओरुज्झमाणा परिरक्खयंता, तंणेव भुजोऽविसमायरामो ॥४६०॥ अम्भाहयंमि लोगमि, सबओ परिवारिए। अमोहाहिं पड़तीहि, गिहंसि नरई लभे॥१॥ केण अभाहओ लोओ, केण वा परिवारिओ ?1 का वा अमोहा वुत्ता ?, जाया ! चिंतावरो हुमि॥२॥ मखुणाऽम्भाहओ लोओ, जराए परिवारिओ।अमोहारयणी वुत्ता, एवं ताय ! वियाणह ॥३॥ जा जा पाइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अहला जति राइओ॥४॥ जा जा वचाइ स्यणी, न सा पडिनियत्तई।धमं तु कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ॥५॥एगओ संवसित्ताणं, वुहोसम्मत्तसंजुया पच्छा जाया गमिस्सामो, मिक्खमाणा कुले कुले॥६॥ जस्सऽस्थि मखुणा सक्सं, जस्स वऽस्थि पलायणं । जो जाणइ नमरिस्सामि,सो हु कंखे सुए सिया ॥७॥ अजेवधम्म पडिपज्जयामो, जहिं पवना न पुणभवामो। अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमं नो विणइनुरागं॥८॥पहीणपुत्तस्स हुनरिय वासो, वासिटि ! भिक्खायरियाइ कालो । साहाहिं रुक्खो रहई समाहि, छिचाहिं साहाहिं तमेव खाणु ॥९॥ पंखाविहणा व जहेव पक्खी, भिवधिहूणो व रणे नरिंदो। विवनसारो वणिउन पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहंपि ॥४७०॥ सुसभिया कामगुणा इमे ते, संपिंडिया अग्गरसा पभूया। मुंजासु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामुपहाणमम् ॥१॥ भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभ अलाभच सुहं चतुक्ख, संचिक्खमाणो परिसामि मोणं ॥२॥ मा हु तुमं सोदरियाण संभरे, जुन्चो व हंसो पडिसोयगामी। जाहि भोगाईमएसमाणं, दुक्खं सुभिक्खायरिया विहारो॥३॥जहाय भोई(भोगा)! तणुयं भुयंगे, निम्मोअणि हिच पलाइ मुत्तो।एमए जाया पजहंति भोए, तेऽहं कहनाणुगमिस्समिको? ॥४॥ छिदित्तु जालं अचलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय। धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ॥५॥ नहेव कुंचा समहकमंता, तयाणि जालाणि दलितु हंसा। पलिंति पुत्ताय पई यमजसं, तेऽहं कहं नाण-- गमिस्समिका ॥६॥ पुरोहियं तं समुयं सदारं, सुचाऽभिनिक्सम्म पहाय भोए। कुहुंचसारं विउलुत्तमं तं, रायं अभिक्खं समुदाय देवी ॥७॥ बतासी पुरिसो राय!, न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिवर्त, धणं आदाउमिच्छसि ॥८॥ सर्व जगं जइ तुह, सचं वावि धणं भवे। सचंपि ते अपजतं, नेव ताणाय तं तव ॥९॥ मरिहिसि राय ! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय। इको हु धम्मो नरदेव ! नाणं, न विजई अभ(ज)मिहेह किंचि ॥४८॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्मा चरिसामि मोणं। अकिंचणा उजुकडा निरामिसा, परिग्गहारंभनियत्तऽदोसा ॥१॥ दवग्गिणा जहा रणे, इज्झमाणेसुं जंतुसु। अखे सना पमोयंति, रागहोसवसं गया ॥२॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाणं न बुज्झामो, रागदोसग्गिणा जगं ॥३॥ भोगे भुच्चा बमित्ता य, लहुभूयविहारिणो। आमोअमाणा गच्छंति, दिया कामकमा इव ॥४॥ इमे य बद्धा फंदंति, मम हत्थऽजमागया। वयं च सत्ता कामेसु. भविस्सामो जहा इमे ॥५॥ सामिसं कुललं दिस्सा, बज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सचमुज्झित्ता, विहरिस्सामो निरामिसा ॥६॥ गिडोक्मे य नचाणं, कामे संसारवड्ढणे। उरगो सुवण्णपासिच, संकमाणो नणुं चरे ॥ ॥ नागुश्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए। एवं पत्थं (इति एत्यं) महाराय !, उसुआरित्ति मे सुर्य ॥८॥ चइत्ता विपुलं रजं, कामभोगे अदुबए। निश्चिसया निरामिसा, निहा निप्परिग्गहा ॥९॥ सम्मं धम्म बियाणिना, चिच्चा कामगुणे चरे। तवं पगिज्झऽहक्खायं, पोरं घोरपरकमा ॥४९०॥ एवं ते कमसो मुद्दा, सब्वे धम्मपरायणा। जम्ममच्चुभउब्बिग्गा, दुक्खस्संतगवेसिणो ॥१॥ सासणि विगयमोहाणं, पुष्यि भावणभाविया। अचिरेणेव कालेणं, दक्ससंतमवागया ॥२॥राया सह देवीए, माहणो उ पुरोहिओ। माहणी दारगा चेच, सब्वे ते परिनिबुडि ॥४९॥ त्ति बेमि. उसयारिजायणं १४॥ मोर्ण परिस्सामि समिश्च धम्म, सहिए उज्जकडे नियाणछिने। संथर्व जहिज | १२७८ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, Har-2
मुनि दीपरनसागर

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