Book Title: Aagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 5
________________ सामण्णे कम्मसत्तिओसन्ना। सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो॥१॥जह कागणीइ हेउं मणिरयणाणं तु हारए कोडिं। तह सिद्धसुहपरुक्खा अबुहा सजति कामेसुं ॥२॥ चोरो रक्खसपहओ अस्थत्थी हणइ पंथियं मूढो। इस लिंगी मुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्मं ॥३॥ तेमुवि अलद्धपसरा अवियोहा दुक्खिया गयमईया। समुर्विति मरणकाले पगामभयभेखं नस्यं ॥४॥ धम्मो न कओ साहून जेमिओ न य नियंसियं सहं । इण्हि परं परासु(प. क)त्ति य नेव य पत्ताई सुक्लाई॥५॥ साहूर्ण नोक्कयं परलोयच्छेय संजमो न कओ। दुहओऽवि नओ विहलो अह जम्मो धम्मरुक्खाणं ॥६॥ दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्तसागराभिहया। तस्स अपडिकमंता मरंति ते बालमरणाई ॥७॥ इय अवि मोहपउत्ता मोहं मोनूण गुरुसगासम्मि। आलोइय निस्सहा मरिउं आराहगा तेऽवि ॥८॥ इत्थ विसेसा भण्णइ छलणा अवि नाम हुज जिणकप्पो। किं पुण इयरमणीणं तेण विही देसिओ इणमो ॥९॥ अप्पविहाणी जाहे धीरा मुयसारमरियपरमत्था। ते आयरिय विदिन्नं उचिंति अन्भुजयं मरणं ॥८०॥ आलोयणाइ संलेहणाइ खमणाइ काल उस्सगे। ओगासे संथारे निसग्ग वेरमा मुक्खाए ॥१॥प्राणविसेसो लेसा सम्मत्तं पायगमणयं चेव। चउदसओ एस विही पढमो मरणंमिनायो ॥२॥ विणओवयार माणस्स भंजणा पृयणा गुरुजणस्स। तित्थयराण | य आणा मुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ॥३॥ छत्तीसाठाणेमु य जे पवयणसारमरियपरमत्था। तेसिं पासे सोही पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं ॥४॥ वयछक्क कायछकं बारसर्ग तह अकप्प गिहि9 भाण। पलियंक गिहिनिसिज्ञा ससोभ पलिमजण सिणाणं ॥५॥ आयावं च उवधारवं च ववहारविहिविहिन य। उशीलगा य धीरा परूवणाए विहिण्णू या ॥६॥ तह य अवायवि. | हिजू निजवगा जिणमयम्मि गहियत्था। अपरिस्साई यतहा विस्सासरहस्सनिच्छिड्डा॥ ७॥ पदमं अट्ठारसर्ग अट्ट य ठाणाणि एव भणियाणि । इत्तो इस ठाणाणि य जेसु उवट्ठावणा मणिया ॥८॥ अणवट्ठतिगं पारंचिगं च निगमेय छहि गिहीभूया। जाणंति जे उ एए सुअरयणकरंडगा सूरी ॥९॥ सम्मईसणचत्तं जे य बियाणंति आगमविहिन्न। जाणति चरित्ताओ य निम्गय अपरिसेसाओ ॥९॥ जो आरंभे पहा चिअत्तकिचो अणणुताची या सोगो अभवे दसमो जेसूबट्ठावणा भणिया ॥१॥ एएम विहि विहष्णू छत्तीसाठाणएम जे सूरी। ते पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणनि नायचो ॥२॥ तेसिं मेरुमहोयहिमेयणिससिसूरसरिसकप्पाण। पायमूले अविसोही करणिजा सुविहियजणेणं ॥३॥ काइयवाइयमाणसियसेवणं दुप्पओ. गर्सभूयं । जो अइयारो कोई ने आलोए अगृहितो ॥४॥ अमुगंमि इओ काले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं। जं जह निसेवियं खलु जेण य स नहाऽऽलोए॥५॥ मिच्छादसणसाल मायासाडं नियाणसा च। न संखेवा दुविहं दधे भावे य बोद्धच ॥६॥ वि(ति)विहं तु भावसई दसणनाणे चरित्तजोगे य। सञ्चित्ताचित्तेऽविय मीसए याचि दबमि ॥ ७॥ सुहूर्मपि भावसात अणुदरिना उ जो कुणइ कालं । लजाय गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ॥८॥ तिविहंपि भावसाई समुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं । पञ्चजाई सम्म म होइ आराहओ मरणे ॥९॥ तम्हा सुत्नरमूलं अविकूलमविदुर्य अणुविम्यो। निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोअए सवं ॥१०॥जह बालो जपतो कजमकजं च उजुयं भणइ । नं नह आलोएजा मायामयविष्पमुक्को य॥१॥ कयपाचोऽवि मणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरोश भारवहो ॥२॥ लजाइ गारवेण य जे नालोयंति गुम्सगासम्मि। | घंपि सुयसमिदा नहुने आराहगा हुनि ॥३॥जह मुकुसलोऽवि विजो अनस्स कहेइ अत्तणो वाहितिं तह आन्द्रीय मुवि ववह जहकर्म सर्व आलोइन सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो ॥५॥ अनंपरजोगेहि य एवं समबडिए पोगेडिं। अमगेहि य अमगेहि य अमुयगर्सठाणकरणेहि ॥६॥वण्णेहि य गंधेहि य सरफरिसरसरूवगंधेहिं । (सदेहि य रसफरिसठाणेहिं)। पडिसेवणा कया पजवेहि कया जेहि य जहि च ॥७॥ जो जोगओ अपरिणामओ अ दंसणचरिनअइयारो। छट्ठाणबाहिरो वा उवाणभंनरो वावि ॥८॥ नं उजुभावपरिणउ रार्ग दोसं च पयणु काऊणं। तिविहण उदरिजा गुरुपामूले अगृहितो ॥९॥ नवितं सत्यं च विसं च दुप्पउनु कुणह वेयालो। जनव दुपउत्तं सप्पुत्र पमाइणो कुरो॥११०॥ जं कुणइ भावसतुं अणुदियं उत्तमढकालम्मि । दाइहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥१॥ तो उदरंति गारवरहिया मूलं पुणभवलयाणं । मिच्छादसणसाई मायासाई नियाणं च ॥२॥ रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं। रोगेणायंकेण व वत्तीइ पराभिओगेणं ॥३॥ गिहिविजापडिएण व सपक्सपरधम्मिओवसम्गेणं । निरियजोणिगएण व दिनमणूसोबसग्गेणं ॥४॥ उवहीइ व नियडीइब नह सावयपेलिएण व परेणं । अप्पाण भएण कयं परस्स छंदाणुवनीए ॥५॥ सहसकारमणाभोगओ अज पक्यणाहिगारेणं । सन्निकरणे विसोही पुण्णागारो य पण्णत्तो ॥६॥ उजअमालोइना इनो अकरणपरिणामजोगपरिसुद्धो। सो पया परकम्मं सुग्गइमग अभिमुहह ।। ७॥ उवहीनियडिपइट्टो सोहि जो कुणइ सोगईकामो। माई पलिकुंचतो करेइ बुंदुरियं मूढो ॥८॥ आन्टोयणाइदोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतो। नम्हा आरोइना मार्य मुनूण निम्सेसं ॥९॥ जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेमु ठाणेसु। ते तह आलोएमी उवडिओ सबभावेणं ॥१२०॥ एवं उबट्ठियस्सवि आलोएउ विमुखभावस्स।ज किंचिवि विस्सरियं सहसकारण ९३७ मरणसमाधिपकीर्णकं, महा-90-१२१ मुनि दीपरत्नसागर

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