Book Title: Aagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 7
________________ सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि ॥२॥ तं फासेहि चरितं तुमंपि सुहप्तीलयं पमुत्तूर्ण । सवं परीसहच, अहियासतो घिइबलेणं ॥३॥ सहे रूवे गंधे रसे य फासे य मुविहिय! जिणेहि । सवेसु कसाएमु य निग्गहपरमो सया होहि ॥४॥ सके रसे पणीए निजूहेऊण पंतलुक्खेहिं । अन्नयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो ॥५॥ सलेहणा य दुविहा अभिनरिया यबाहिरा चेव। अभितरिया कसाए बाहिरिया होइ यसरीरे ॥६॥ उग्गमउप्पायणएसणाविसुदेण अण्णपाणेणं । मियविरसलक्खलहेण दुबलं कुणसु अप्पार्ग॥७॥ उहीणोडीणेहि य अहवण एगंतवद्धमाणेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहिं पयणुयंतो ॥ ८॥ तत्तो अणुपुत्रेणाहारं उवहिं सुजओचएसेणं। विविहतवोकम्मेहि य इंदियविकीलियाईहिं ॥९॥ विविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहि उम्गेहिं। संजममविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं ॥१८०॥ विविहाहि व पडिमाहिय बलवीरियजई य संपहोइ मुहाताओवि नबाहिती जहक्कम संलि. हंतम्मि ॥१॥ छम्मासिया जहला उक्कोसा बारसेव बरिसाई। आयंबिलं महेसी तत्य य उक्कोसयं चिंति ॥२॥ उद्द्वमदसमदुवालसेहिं भत्तेहिं चित्तकडेहिं । मियलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ॥३॥ परिवढिओवहाणो ण्हारुविरावियवियडपांसुलिकडीओ। संलिहियतणुसरीरो अज्झप्परओ मुणी निचं ॥४॥ एवं सरीरसंलेछणाविहिं बहुविहंपि फार्सितो। अज्झवसाणविमुदि खणंपि तो मा पमाइत्था ॥५॥ अज्झवसाणविसुद्धीविचजिया जे तवं विगिट्ठमवि। कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी॥६॥ एवं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई समायरइ। अज्झप्पसंजयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ॥ ७॥ निखिला फासेयवा सरीरसलेहणाविही एसा। इत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं परम वुच्छ ॥८॥ कोहं खमाइ माणं मद्दवया अजवेण मायं च । संतोसेण व लोहं निजिण चत्तारिवि कसाए ॥९॥ कोहस्स व माणस्स व मायालोमेसु वा न एएसि। वच्चई वसं खणंपि हु दुग्गगईवड्ढणकराणं ॥१९॥ एवं तु कसायम्गि संतोसेणं तु विझवेयो। रागहोसपवर्ति बजेमाणस्स विज्झाइ॥१॥ जाति केड ठाणा उदीरगा हुँति हु (इह) कसायाणं। ते उसया बजतो विमुत्तसंगो मुणी विहरे ॥२॥ सतोवसंतधिइमं परीसह विहिं व समहियासंतो। निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिह मोहे कसाए य॥३॥ इट्ठाणिद्वेसु सया सहफरिसरसरूवगंधेहिं। सुहदुक्खनिविसेसो जियसं. गपरीसहो विहरे ॥४॥ समिईम पंचसमिओ जिणाहितं पंच इंदिए सुठु। तिहिं गारखेहिं रहिओ होइ तिगुत्तो य दंडेहिं ॥५॥ सन्नासु आसबेमु अ अट्टे कहे अतं विमुद्दप्पा। रागद्दोसपवंच निजिणि उं सव्वणो जुत्तो ॥६॥ को दुक्खं पाविजा? कस्स य सुक्खेहिं विम्हओ हुज्जा? को वा न लभिज मुक्वं? रागहोसा जइन हुज्जा ॥७॥ नविन कुणइ अमित्तो सुदढ़त्रिय बिराहिओ समयोचि। जं दोचि अनिम्गहिया करंति रागो य दोसो य॥८॥ तं मुयह रागदोसे सेयं चिंतेह अपणो नियं। जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा ॥९॥ इहलोए आयास अयसं च करिति गुणविणासं च। पसर्वति य परलोए सारीरमणोगए दुक्खे ॥२०॥ घिदी अहो अकजं जं जाणतोऽवि रागदोसेहिं । फलमउलं कडुयरसं तं चेव निसंबए जीवो ॥१॥ तं जइ इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स। तो तवसंजमभंडं सुविहिय! गिण्हाहि तुरंतो ॥२॥ बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । न हु वसमा. गंतवं रागहोसाण पावाणं ॥३॥जंन लहइ सम्मत्तं लघृणवि जन एइ वेरग्गं। विसयमुहेमु य रज्जइ सो दोसो रागदोसाणं ॥४॥ भवसयसहस्सदुलहे जाइजरामरणसागरुत्तारे। जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥५॥ दवेहिं पजवेहि य ममत्तसंगेहिं सुट्ठवि जियप्पा । निप्पणयपेमरागो जइ सम्म नेइ मुक्वत्थं ॥६॥ एवं कयसलेह अभितरवाहिरम्मि संलेहे । संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहाहि ॥ ७॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणगंभीरो। आउरपञ्चक्खाणं पुणरवि सीहाबलोएणं ॥८॥न हु सा पुणगनविहीं जा संवेगं करइ भण्णंनी। आउरपञ्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥९॥ एस करेमि पणामं तिस्थयराणं अणुत्तरगईणं। सवेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥२१०॥ जंकिचिवि दुचरियं नमहं निंदामि सवभावणं । सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं ॥१॥ अभितरं च तह बाहिरं च उवहीं सरीर सा(रमा)हारं । मणवयणकायतिकरणसुद्धोऽहं रहमरई दीणयं भयं सोगं। रागहोस बिसायं उस्सुगभावं च पयहामि ॥३॥ रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नुया पडिनिवेसेणं । जो मे किंचिवि भणिओ नमहं निविहण खामेमि ॥४॥ सवेसु य दव्वेसु य उचट्ठिओ एस निम्ममत्ताए। आलंबणं च आया सणनाणे चरिते य ॥५॥ आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे तवे जोगो। जिणवयणविहिविलम्गो अवसेसविहिं नु दंसेहि ॥६॥ मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पमाएणं। ते सवे निंदामि पडिकमे आगमिस्साणं ॥७॥ एगो सयंकडाई आया मे नाणद. सणवलक्खो। संजोगलक्खणा खल सेसा मे पाहिरा भावा ॥८॥ पत्ताणि दुहसयाई संजोगस्सा(वसा)णुएण जीवेणं । तम्हा अर्णतदुक्खं चयामि संजोगसंबंध ॥९॥ अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सवो ममनं च। जीवेसु अजीवेसु य तं निदे तं च गरिहामि ॥२२०॥ परिजाणे मिच्छत्तं सवं अस्संजमं अकिरियं च सर्व चेव ममत्तं चयामि सर्व च खामेमि ॥१॥ जे में जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते तह आलोएमि उवडिओ सवभावेणं ॥२॥ उप्पना उप्पना माया अणुमग्गओ निहंतचा। आलोयणनिंदणगरिहणाहिंन पुणोत्ति या बिइयं ९३९मरणसमाधिप्रकीर्णकं, जहा-१२-२२३ मुनि दीपरत्नसागर


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