Book Title: Aagam Manjusha 33 Painnagsuttam Mool 10 Maransamaahi
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 4
________________ सहहे निचं ॥ ७॥ धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकार्य च। आणाइ सहहंता सम्मत्ताराहगा भणिया॥८॥ अरहंतसिद्धचेइयगुरुसु सुयधम्मसाहुबम्गे य। आयरियउबज्झाए पत्रयणे सत्रसंघे य॥९॥ एएसु भत्तिजुत्ता पूर्यता अहरहं अणण्णमणा। सम्मत्तमणुसरिन्ता परित्तसंसारिया हुंति ॥२०॥सुविहिय! इर्म पाइण्णं असहहंतेहिं णेगजीवहिं। बालमरणाणि पूणी पहूणि मरणाणि। न मरति अप्पमत्ता चरित्तमाराहियं जेहिं ॥२॥ दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुढा पुत्रसंगओ मुका। जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं ॥३॥ एवं पंडियमरणं जे धीरा उवगया उवाएणं । तस्स उवाए उइमा परिकम्मविही उ जुंजीया ॥४॥ जे कुम्मसंखताडणमास्यजियगगण पंकयतरूणं। सरिकप्पा सुयकप्पियाहारणीहारचिट्ठागा ॥५॥ निचं तिदंडविरया तिगृत्तिगुत्ता तिसहनिस्सला । तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयावरा समणा ॥ ६॥ पंचमहायसुअस्थिय संपुण्णचरित्त सीलसंजुत्ता। तह तह मया महेसी हवंति आराहगा समणा ॥७॥ इक अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च। तो नाणदसणचरित्ततवेसु सुठिया मुणी हुँति ॥८॥ परिणामजोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता। इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव ॥९॥ संसारबंधणाणि य रागहोसनियलाणि छित्तूर्ण। सम्मईसणसुनिसियसुतिक्खधिइमंडलग्गेणं ॥३०॥ दुष्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारव विमुक्का । कार्य मणं च वार्य मणवयसा कायसा चेव ॥१॥ तवपरसुणा य छिनूण तिण्णि उजुखंतिविहियनिसिएण। दुग्गइमग्गा नरएण मणवयसाकायए दंडे ॥२॥ तं नाऊण कसाए चउरो पंचहिय पंच हन्तूर्ण। पंचासवे उदिण्णे पंचहि य महजयगुणेहिं ॥३॥ छज्जीवनिकाए रक्खिऊण छलदोसबजिया जइणो। तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुआ य॥४॥ एकगद्गतिगचउपणसत्तट्ठगनवदसगठाणेसु । असुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सइ संठिया जे उ॥५॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिताए॥६॥ छसु ठाणेसुइमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पण्णे। कडजोगी आहार करंति जयणानिमित्तं तु॥७॥ जीएम सरीरसंकप्पचेटुमचयंता। अविकप्पऽवजभीर उर्विति अब्भुजयं मरणं ॥८॥आर्यके उवसग्गे तितिक्खयाबमचेरगुत्तीस। पाणिया नवहेउं सरीरपरिहार वृच्छेयो॥९॥ पडिमासु सीहनिकीलियासु घोरे अ(सुड)भिग्गहाईसु। चिय अम्भितरए बजो अतवे समणुरत्ता॥४०॥ अविकलसीलायारा पडिबन्ना जे उ उत्तम अहूं। पुचिडाण इमाण य. भणिया आराहणा चेव ॥१॥ जह पुत्रदुअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोओ। तीरासन्न पावइ रहिओऽवि अवलगाईहिं ॥२॥ तह सुकरणो महेसी तिकरण आराहओ धुर्व होइ। अह लहह उत्तम8 तं अइलाभत्तणं जाण ॥३॥ एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहिवजणस्स । इत्तो जह करणिज पंडियमरणं तहा सुणह ॥ ४ ॥ फासेहंति चरितं सा महसीलयं पजहिऊणं। घोरं परीसहवम अहियासितो धिइवलेणं ॥५॥ सदे रूवे गंधे रसे अ फासे अ निग्घिणधिईए। सवेसु कसाएसु अनिहंतु परमो सया होहि ॥६॥ चाऊण कसाए इंदिए अ सवे अ गारवे हंतूं। नो मलियरागदोसो करेह आराहणासुद्धिं ॥७॥ दसणनाणचरिते पव्वजाईसु जो अ अइयारो। तं सव्वं आलोयहि निरवसेसे पणिहियप्पा ॥८॥जह कंटएण विद्यो सवंगे चेयणहिओ होइ। नह चेव उद्धियमि उ निस्साडो निवुओ होइ ॥९॥ एवमणुद्धियदोसो माइण्डो तेण दुक्खिओ होइ। सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निाओ होइ ॥५०॥ रागहोसाभिहया ससड़मरणं मरंति जे मूढा। ते दुक्खसडबहुला भमंति संसारकतारे ॥१॥ जे पुण तिगारवजढा निस्सला दसणे चरिते य। विहरंति मुक्कसंगा खर्वति ते सवदुक्खाई ॥२॥ सुचिरमवि संकिलिट्ठ विहरितं झाणसंवरविहीणं । नाणी संवरजुनो जिणइ अहोरत्तमित्तेणं ॥३॥जं निजरेइ कम्मं असंवुडो सुबहुणाऽवि कालेणं । तं संबुडो तिगुत्तो खवेद ऊसासमिनेणं ॥४॥ सुबहुस्सुयावि संता जे मूढा सीलसंजमगुणेहिं। न करंति भावसुदि ते दुक्खनिभेलणा हुंति ॥५॥ जे पुण सुयसंपन्ना चरित्नदोसेहिं नोबलिप्पति। ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुक्खक्वयं साहू ॥६॥ पुव्वमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । न भवद परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥ ७॥ तंएवं जाणतो महत्तरं लागं सुविहिएस । दसणचरित्नमुद्दीइ निस्सहलो विहर नं धीर ! ॥ ८॥ इत्थ पुण भावणाओ पंच इमा हुंति संकिलिट्ठाओ। आराहत सुविहिया जा निचं वजणिजाओ॥९॥ कंदप्पा देवकिक्सि अभिओगा आसुरी य संमोहा । एयाउ संकिलिट्ठा असंकिलिट्ठा ह्वइ छट्ठा ॥६०॥ कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निचहासणकहाओ। विम्हावितो उ परं कंदप्पं भावणं कुणइ ॥१॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियम्स संघसाहणं । माई अचण्णवाई किविसियं भावणं कुणइ ॥२॥ मंताभिओगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ । सायरसइढिहउँ अभिओगं भावणं कुणइ ॥३॥ अणचबरोसबुग्गहसंपन्न तहा निमित्तपडिसेबी। एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥४॥ उम्परादेसणा नाण (मग्ग) सणा मम्गविप्पणासो अमोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोह ॥ ५॥ एयाउ पंच बजिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर!। पंचसमिओ निगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं ॥६॥ एयाए भावणाए बिहर चिसुद्धाइ दीहकालम्मि । काऊण अंतसुदि दसणनाणे चरिते य ॥७॥ पंचविहं जे सुदि पंचविहविवेगसंजुयमकाउं। इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति ॥८॥ पंचविहं जे सुधि पत्ता निखिलेण निच्छियमईया। पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता ॥९॥ लहिऊणं संसारे सुदुहं कवि माणुसं जम्म। न लहंति मरणदुलहूं जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥७॥ किच्छाहि पावियम्मिवि (२३४) ९३६ मरणसमाधिमकीर्णकं जाहा-१७-७१ मुनि दीपरत्नसागर ARAT

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