Book Title: Aagam Manjusha 14 Uvangsuttam Mool 03 Jivajivaabhigam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 20
________________ (पोयया) य समुच्छिमा य, (से किं ते) जराउया (पोयया)?,२तिविधा पं००-इत्थी पुरिसा णपुंसका, तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते सो णपुंसया, तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पं०१.सेसं जहा पक्खीणं णाणत्नं ठिती जह• अंतोमुहुर्त उको तिन्नि पलिओवमाई उब्ब० चउत्थि पुढविं गच्छति दस जातीकुलकोडी०, जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा जहा भुयपरिसप्पाणं णवरं उच्च जाव अधेसत्तम पुढवि अद्धतेरस जातीकुलकोडीजोणीपमुह जाव पं०, चउरिदियाणं भंते ! कति जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पं०?, गो० नव जाईकलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा समक्खाया, तेईदियाणं पुच्छा, गो०! अट्ठ जाईकुल जावमक्खाया, बेईदियाणं भंते! कइ जाई.?, पुच्छा गो० सत्त जाईकुलकोडीजोणीपमुह १९८ा कई णं भंते ! गंधा पं०? कई णं भंते ! गंधसया पं०?, गो० सत्त गंधा सत्तगंधसया पं०,कईण भंते ! पुष्फजाईकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा पं०?, गो० सोलस पुष्फजातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा ५०,०- चत्तारि जलयरा(या)णं चत्तारि थलयरा(या)णं चत्तारि महारुक्खियाण चत्तारि महागुम्मिताणं, कति णं भंते ! वल्लीओ कति बडिसता पं०?, गो०! चतारि वाडीओ चत्तारि वाडीसता पं०, कति णं भंते! लताओ कति लतासता पं०?, गो०! अट्ट लयाओ अट्ठ लतासता पं०, कति णं भंते! हरियकाया हरियकायसया पं०?, गो! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पं०,फलसहस्सं च विटवदाणं फलसहस्सं च णालबद्धाणं, ते सवे हरितकायमेव समोयरंति। ते एवं समणुगम्ममाणा एवं समणुगाहिज्जमाणा एवं समणुपेहिजमाणा एवं समणुचिंतिवमाणा एएसु चेव दोसु काएसु समोयरंति, तं-तसकाए चेव थावरकाए चेव, एवामेव सपथावरेणं आजीवियदिटुंतेणं चउरासीती जातिकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खाया ।९९। अत्थि णं भंते ! विमाणाई सोत्थियाणि सोस्थियावत्ताई सोत्थियपभाई सोत्थियकन्ताई सोस्थियवनाई सोस्थियलेसाई सोस्थियज्झयाई सोत्थियसिंगाई सोस्थियकूडाई सोत्थियसिट्ठाई सोत्युत्तरवळिसगाई ?, हंता अस्थि, ते णं भंते! विमाणा केमहालता पं०१. गो० जावतिएणं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अस्थमति एवतिया तिण्णोवासंतराई अत्येगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता, सेणं देवे ताए उकिट्ठाए तुरियाए जाच दिवाए देवगतीए चीतीवयमाणे २ जाव एकाहं वा दुयाहं वा उक्को० छम्मासा बीतीवएजा अत्थंगतिया विमाणं बीतीवइजा अत्यंगतिया विमाणं नो वीतीवएजा, एमहालता णं गो०! ते विमाणा पं०, अस्थि णं भंते ! विमाणाई अचीणि अच्चिरावत्ताई तहेब जाव अचुत्तरवडिंसगाति ?, हंता अस्थि, ते विमाणा केमहालता पं०?, गो०! एवं जहा सोस्थि(याई)णि णवरं एवतियाई पंच उवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विकमे सिता सेसं तं चेव, अस्थि णं भंते ! विमाणाई कामाई कामावत्ताई जाव कामुनस्वडिसयाई?, हंता अस्थि, ते णं मंते! विमाणा केमहालया पं०१, गो० ! जहा सोत्थियाईणि णवरं सत्त उवासंतराइं विक्कमे सेसं तहेव, अस्थि णं भंते ! विमाणाई विजयाई वेजयंताई जयंताई अपराजिताई?, हंता अस्थि, ते भंते ! विमाणा के०१, गो० जावतिए सूरिए उदेइ एवइयाई नव ओवासंतराई सेसं तं चेव, नो पेवणं ते विमाणे बीइवएजा, एमहालया णं ते विमाणा पं० समणाउसो !|१००। चउबिहपडिवत्तीए तिरिक्खजोणियउद्देसओ पढमो ॥५०३ ति० उ०१॥ कतिविहा णं भंते ! संसारसमावण्णगा जीवा पं०?, गो! छबिहा पं० सं०- पुढवीकाइया जाव तसकाइया, से किं तं पुढवीकाइया?,२ दुविहा पं० ०. सुहुमपुढवीकाइयायवादरपुढषीकायिया य, से किं तं मुहुमपुढवीकाइया १,२ दुविहा पं० सं०- पजत्तगा य अपजत्तगा य, सेत्तं सुहुमपुढवीकाइया, से किं तं चादरपुढविकाइया?,२ दुविहा पं०२०-पज्जत्तगा' य अपज्जत्तगा य एवं जहा पण्णवणापदे सम्हा सत्तविधा पं० खरा अणेगविहा पं0 जाव असंखेजा, सेतं पादरपुदविक्काइया, सेत्तं पुढविक्काइया, एवं चेव जहा पण्णवणापदे तहेव निरवसेसं भाणित जाव वणप्फतिकाइया एवं जाव जत्येको तत्थ सिता संखेजा सिय असंखेजा सिता अणंता, सेत्तं बादरवणप्फतिकाइया, सेत्तं वणस्सइकाइया, से किं तं तसकाइया?,२ चउचिहा पं० सं०-इंदिया तेइंदिया चउ. रिदिया पंचेंदिया, से किं तं बेइंदिया ?, २ अणेगविधा ५०, एवं जं चेव पण्णवणापदे तं चेव निरवसेसं भाणितवं जाव सवसिद्धगदेवा, सेत्तं अणुत्तरोववाइया, सेतं देवा, सेत्तं पंचेंदिया, सेत्तं तसकाइया ।१०१। कतिविधा णं भंते ! पुढवी पं०१, गो०! छविहा पुढवी पं० त०-सण्हापुढवी सुबपुढवी वालुयापुढवी मणोसिलापु० सकरापु० खरपुढवी, सण्हापुढवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पं०?, गो०! जह अंतोमु० उको एग वाससहस्सं, सुबपुढवीए पुच्छा, गो०! जह० अंतोमु० उको बारसवाससहस्साई, वालुयापुढवीए पुच्छा, गो०! जहरू अंतोमु० उक्को० चोइस वाससहस्साई, मणोसिलापुढवीणं पुच्छा, गो! जह अंतोमु० उक्को सोलस वाससहस्साई, सक्करापुढवीए पुच्छा, गो०! जह• अंतोमु० उक्को अट्ठारस वाससहस्साई, खरपुढवीए पुच्छा, गो०! जह० अंतोमु० उक्कोचावीसं वाससहस्साई, नेरइयाण मंते ! केवतियं कालं ठिती पं०१,गो०! जह० दस वाससहस्साई उको० तेत्तीस सागरोचमाई ठितिपदं सर्व भाणिय जाव सबट्टसिद्धगदेवत्ति, जीवे णं भंते ! जीवेत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो! सबदं, पुढवीकाइए णं भंते ! पुढवीकाइएत्ति कालतो केवचिरं होति', गो०! सबद्ध, एवं जाव तसकाइए।१०२। पटुप्पन्नपुढवीकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स णिलेवा सिता?, गो० ! जहण्णपदे असंखेजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहि उकोसपए असंखेजाहिं उस्सपिणीओसप्पिणीहिं जहन्नपदातो उकोसपर्य असंखेजगुणं, एवं जाव पडुप्पन्नचाउकाइया, पटुप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता ?, गो०! पडुप्पणवण जहण्णपदे अपदा उक्कोसपदे अपदा पदुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं णस्थि निठेवणा, पडुप्पजतसकाइयाणं पुच्छा, जहण्णपदे सागरोवमसतपुहुत्तस्स उक्कोसपदे सागरोवमसतपुडुत्तस्स जण्णपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया ।१०३। अविमुद्धलेस्से णं भंते! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ?, गो० ! नो इणढे समढे, अविसुद्धलेसे गं भंते ! अणगारे ६१८ जीवाजीवाभिगमः परिम-३ मुनि दीपरत्नसागर

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