Book Title: Aagam 28 TANDUL VAICHAARIK Moolam evam Chaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ आगम (२८) “तन्दुलवैचारिक” - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं संस्कृतछाया) ------------ मूलं [१६],गाथा [८१] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [२८], प्रकीर्णकसूत्र - [०५] "तन्दुलवैचारिक मूलं एवं संस्कृतछाया 5-% प्रत सूत्रांक [१६] ||८१|| जोवणं च कुसुमसमं । सुक्खं च जमनियत्तं तिन्निवि तुरमाणभुजाई ॥ ८१ ।। ५२८ ॥ एवं खु जरामरणं परिखियह वग्गुरा व मियजूहं । न य णं पिच्छह पत्तं संमूढा मोहजालेणं ॥ ८२ ॥ ५२९ ॥ आउसो! जंपि इमं सरीरं हट्ट पियं कंतं मणुपणं मणामं मणाभिरामं धेचं वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगस- माणं रयणकरंड ओविव सुसंगोवियं चेलापेडाएविव सुसंपरिवुडं तिल्लपेडाविव सुसंगोवियं मा णं उण्हं मा 31 हाण सीपं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा पां वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तियसिभियसंनिवाइया विविहा रोगायंका फुसंतुत्तिकडु, एवंपि याई अधुवं अनिययं असासयं चओव चइयं विप्पणासधम्म पच्छा व पुरा व अवस्स विष्पचइयत्वं, एघस्सवि याई आउसो ! अणुपुषेणं अट्ठारस य &ापिट्टकरंडगसंधीओ पारस पांसुलिकरंडया छप्पंसुलिए कडाहे बिहस्थिया कुच्छी चउरंगुलिआ गीवा चउप-16 चपलं जीवितं यौवनं च कुसुमसमम् । सौख्यं च यदनियतं त्रीण्यपि त्वर्यमानभोग्यानि ॥ ८१ ॥ एतत् खलु जरामरणं परिक्षिपति वा-IN गुरेव मृगयूथम् । न चैनं प्रेक्षवं प्राप्तं संमूढा मोहजालेन ॥ ८२ ॥ आयुष्मन् ! यदपि चेदं शरीरमिष्ट प्रियं कान्तं मनोझं मनोमं मनो-13 ऽभिरामं स्वैर्य पैश्वासिकं संमतं बहुमतमनुमतं भानुकरण्डकसमानं रत्नकरण्डकमिव मुसङ्गोप्यं चेलमजूषेव सुसंपरिसूतं तैलभाजनमिव | सुमङ्गोपिनं मा उष्ण मा शीतं मा क्षुधा मा पिपासा मा चौरा मा व्याला मा दंशा मा मशका मा च वातिकपैत्तिकालैष्मिकसान्निपा|तिका विविधा रोगातङ्काः स्पृशन्त्वितिकृत्या, एवमपि चाभुवमनियतमशाश्वतं चयापचवि के विषणाशधर्म पश्चात् पुरा वाऽवश्यं विप्रहातयं, एतस्यापि धायुधमन ! आनुपूर्वेणाष्टादश पृष्ठकरण्टकसन्धयः द्वादश पांशुलिकरण्डकाः पदपांालिकः कटाहः द्विहस्तिका कुक्षिः चतु-18 दीप EDEOCOCCANCER अनुक्रम [१००] JAMERustamanna ~31~

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49