Book Title: Aagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम (१७) प्रत सूत्राक “चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१], -------------------- प्राभृतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [१] + गाथा ||३|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] “चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: भावःज्योतिषिग्रह नक्षत्रतारकाणि तेषांगणःसमूहस्तस्यरांक्षाधिपतिद्योतिर्गणराजश्वेन्द्रस्तस्य प्रज्ञप्तिं । प्रज्ञप्यते प्ररूप्यन्ते अनयेतिप्रज्ञप्तिर्यथावस्थित तत् स्वरूप प्रतिपादिका वचनसंततिस्तां वक्ष्येप्रतिपादयिष्यमितत्र पूर्वेषुचंद्गादि वक्तव्यता। "नामेण इंदभूतीत्तिगोतमो वंदिऊण तिविहेणं। पुच्छइ जिनवरवसहंजोइसगणराय पन्नतिं ।। वृ.प्रथमतोगौतमप्रश्नोपेक्षेवमावेदयति।योनाम्नाजगति इन्द्रभूतिरिति प्रसिद्धो, गौतमो गोत्तमगोत्रः,सभगवंतंजिनवर वृषमंवर्द्धमानस्वामिनमस्य स्वसमीपेतप्रश्नासंभवात्रिविधेन चमनसावाचा कायेनचवन्दित्वा-नमस्कृत्य, ज्योतिषराजस्यचन्द्रमस उपलक्षणमेतत्सूयदिश्च प्रज्ञप्तेप्ररूप्यते इति प्रज्ञप्तिश्चन्द्रादीनां यथावस्थिता स्वरूपस्थितस्तां सम्पृच्छतीति । शिष्यस्य प्रश्नावकाशमाशङ्कय प्रथमतो प्रथमतोप्रामृतेषु यदक्तवयं तदुपक्षिपन् गाथा पञ्चकमाह ||३|| दीप अनुक्रम [३] [यहां तक 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' आगम 'सूर्यप्रज्ञप्ति' से अलग पडता है, अब आगे से दोनो आगमोमें बहलतया सबकुछ समान ही दिखाई दिया है ~8~

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