Book Title: Aagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम (१७) “चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभूत [-], ------------------- प्राभूतप्राभृत [-], ------- ------ मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: श्रीमन्मलयगिर्याचार्यविहितवृत्तियुतं | श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्याख्यमुपाङ्गं | प्रत सत्राका दीप अनुक्रम प्राभृत १ वृ० अहम् । श्री वर्धमानाय नमः ॥१॥ मुक्ता फलमिव करत कलितं, विश्वे समस्त मपि सततं योवेत्ति, विगत कर्म सङ्ग, यति नाथो जिनो वीरः ।। सर्वश्रुत पारगताः प्रतिहत निःशेष कुपथ संतानाः । जगदेव तिलक भूता, जयंति गणधारिणः ।। विलसउ मनसिस दामे जिनवाणि परम कल्पलतिकेव कल्पित सकल नरामर, शिवसुखफलदानतललिता ।। चंद्रप्रज्ञप्तिमहं गुरुपदेशनुसारतः किञ्चित् । विवृणोमि यथाशक्ति स्पष्टं स्वपरोपकाराय।। [तत्राविघ्नेनेष्ठप्रसिध्यर्थ-मादाविष्ट देवता स्तवमाहं ] अत्र प्रथमं प्राभृतं आरब्धं ~ 4~Page Navigation
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