Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं - ----------------- मूलं [२,३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गम् साध्य प्रत सूत्रांक [२,३] दीप अनुक्रम अयसिकुसमप्पपासे नील इत्यर्थः अञ्जनको-नस्पतिः हलधरकोशेयं-बलदेववखं कजलाङ्गी- कजलगृहं शृङ्गभेदो-महि १उत्क्षिपादिविषाणच्छेदः रिष्ठक-रलं असनको-पियकाभिधानो बनस्पतिः सनबन्धन-सनपुष्पवृन्तं 'मरकतमसारकलित्तनयणकीयरासिवन्ने' मरकत-रलं मसारो-मसणीकारका पाषाणविशेषः 'कडित'ति कडित्रं कृत्तिविशेषः नयनकीका नेत्रमध्यतारा पूर्णभद्रवतद्राशिवर्णः काल इत्यर्थः, ' निघणे' स्निग्धधनः 'अट्ठसिरे' अष्टशिराः अष्टकोण इत्यर्थः, 'आर्यसतलोवमे सुरम्मे ईहा र्णनं सू.२ मिगउसभतुरगनरमगरवालगकिन्नररुरुसरभचमरवणलयपउमलयभत्तिचित्ते' इहामृगाः-वृकाः व्यालका:-श्वापदाःकोणिका भुजगा वा 'आईणगरुयबूरणवणीयतूलफासे' आजिनक-चर्ममयं वस्त्रं रूतं प्रतीत बूरो-वनस्पति विशेषः तूलम्-अर्कतूल र्णनं सू.३ 'सीहासणसंठिए पासाईए जाव पडिरूवेति । इह ग्रन्थे वाचनाद्वयमस्ति, तत्रैकां बृहत्तरी व्याख्यास्यामो, द्वितीया || तु प्रायः सुगमैच, यच तत्र दुरवगर्म तदितरच्याख्यानतोऽवबोद्धव्यमिति । 'कूणिए नाम राय'त्ति कणिकनामा श्रेणिकराज-18 पुत्रो राजा 'होत्थ'त्ति अभवत् । 'वन्नओ'त्ति तद्वर्णको वाच्यः, स च 'महया हिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे इत्यादि 'पसंतर्डिबडमरं रज पसासेमाणे विहरति' इत्येतदन्तः, तत्र महाहिमवानिव महान् शेषराजापेक्षया तथा मलया-18 पर्वतविशेषो मन्दरो-मेरुमहेन्द्रः-शक्रादिदेवराजस्तद्वत्सार:-प्रधानो यः स तथा, तथा प्रशान्तानि डिम्बानि-विमाः डम-18 राणि-राजकुमारादिकृतविद्वरा यसिस्तत्तथा 'प्रसाधयन्' पालयन् 'विहरति आस्ते मेति, समग्रं पुनरने व्याख्यास्यामः। Rel॥६॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जमुहम्मे नाम थेरे जातिसंपन्ने कुलसंपण्णे बलरूवविणयणाणदसणचरित्तलाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वर्चसी जसंसी जियकोहे जिय [२,३] eseseseeeee पूर्णभद्र-चैत्यस्य आदि-वर्णनं, सुधर्मस्वामिन: वर्णनं ~ 15~

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