Book Title: Aagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 15
________________ आगम (०६) प्रत सूत्रांक [२,३] दीप अनुक्रम [२,३] “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्ति:) अध्ययनं [-] मूलं [२३] श्रुतस्कन्धः [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०६] अंग सूत्र [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः Erato येषां सन्ति ते तथा, तथा शुभाः सेतवो मार्ग आलवालपाल्यो वा केतवथ-ध्वजा-बहुला-बहवो येषां ते तथा ततः कर्मधारयः, 'अणेगरहजाणजोग्गसिवियपविमोयणा' अनेकेषां रथादीनामघोऽतिविस्तीर्णखात् प्रविमोचनं येषु ते तथा 'सुरम्मा पासाईया दरिस णिज्जा अभिरुवा पडिख्वा । तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेस भागे एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पण्णत्ते, कुसविकुसविमुद्धरुक्खमूले' कुशा-दर्भा विकुशा- वल्वजादयस्तैर्विशुद्धं विरहितं वृक्षानुरूपं मूलं समीपं यस्य स तथा 'मूलमंते' इत्यादिविशेषणानि पूर्ववद्वाच्यानि यावत् 'पडिरूवे, से णं असोगवरपायवे अन्नेहिं बहुहिं तिलएहिं लउएहिं छत्तोएहिं सिरिसेहिं सत्तवण्णेहिं दहिवण्णेहिं लोद्धेहिं धवेहिं चंदणेहिं अज्जुणेहिं निंबेहिं कुडएहिं कलंबेहिं सवेहिं फणसेहिं दाडिमेहिं सालेहिं तालेहिं तमालेहिं पिएहिं पियगृहिं पुरोवरहिं रायस्वस्वहिं नंदिरुक्खेहिं सबओ समता संपरिक्खित्ते, ते णं तिलया लउया जाब नंदिरुक्खा | कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो' इत्यादि पूर्ववत्, यावत्, 'पडिरूवा, ते णं तिलया जाब नंदिरुक्खा अन्नाहिं बहूहिं पउमलयाहिं नागलयाहिं असोगलयाहिं चंपयलयाहिं चूयलयाहिं वणलयाहिं वासंतियलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहिं सबओ समता संपरिक्खित्ता, ताओ णं पउमलयाओ निचं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ, तस्स णं असोगवरपायचस्स हेट्ठा ईसिबंधंसमल्लीणे' स्कन्धासनमित्यर्थः, 'एत्थ णं महं एके पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते' 'एत्थ णं'तिशब्दोऽशोकवरपादपस्य यदधोऽत्रेत्येवं संबन्धनीयः, 'विक्खंभायामसुप्पमाणे किण्हे अंजणकवाकुचल यह लहर को सेज्ज आगा सकेस कज्जलंगीखं जणसिंगभेय रिट्ठयजंबूफल असणक सणबंधणनीलुप्पलपत्तनिकर पूर्णभद्र चैत्यस्य आदि वर्णनं For Penal Use On ~14~ andray orPage Navigation
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