Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 21
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [४] दीप अनुक्रम [4] ““भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः) शतक [१], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित व्याख्या. प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १ ॥७॥ Education आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः सिलकं' नाम 'चेइयं' ति चितेर्लेप्यादिचयनस्य भावः कर्म्म वेति चैत्यं सज्ञाशब्दत्वादेवविम्बं तदाश्रयत्वात्तद्गृहमपि चैत्यं, तच्चेह व्यन्तरायतनं न तु भगवतामर्हतामायतनं 'होत्थ'ति बभूव, इह च यक्ष व्याख्यास्यते तत्प्रायः सुगमत्वादित्यवसेयमिति ॥ ४ ॥ तेणं काले णं तेणं समए णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तिस्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरि| सवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थीए लोगुत्तमे लोगनाहे लोगध्पदीवे लोगपजोयगरे अभयदए चक्खुद मग्ग|दए सरणदए धम्मँदेसर धम्मसारहीए धम्मवरचाउरंत वही अप्पहियवरमाणदंसणधरे विreesमें जिणे जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सब्ब सम्बदरिसी सिवमयलमरुपमणतमक्खयमव्यायाहमपुणराव त्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामे जाच समोसरणं ॥ सू० ॥ ५ ॥ 'सम' ति 'श्रमु तपसि खेदे चेति वचनात् श्राम्यति - तपस्यतीति श्रमणः, अथवा सह शोभनेन मनसा वर्तत इति समनाः, शोभनत्वं च मनसो व्याख्यातं स्तवप्रस्तावात् मनोमात्रसत्त्वस्यास्तवत्वात्, संगतं वा यथा भवत्येवमणतिभाषते समो वा सर्वभूतेषु सन् अणति - अनेकार्थत्वाद्धातूनां प्रवर्त्तत इति समणो निरुक्तिवशाद् भवति, "भगवं'ति भगवान् ऐश्वर्यादियुक्तः पूज्य इत्यर्थः, 'महावीरे'ति वीरः 'सूर वीर विक्रान्तावि 'तिवचनात् रिपुनिराकरणतो विक्रान्तः, स च चक्रवर्त्यादिरपि स्यादतो विशेष्यते महांश्चासौं दुर्जयान्तररिपुतिरस्करणाद्वीरचेति महावीरः, एतच * धम्मद इति पा० । For Pale Only 'श्रमण' 'भगवन' 'महावीर' शब्दानाम एवं भगवतः विशेषणानाम व्याख्याः / ( शक्रस्तवस्य व्याख्या) ~20~ १ शतके उद्देशः १ राजगृहवर्णनम् सू० ४ || 16 ||Page Navigation
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