Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 8
________________ प्रकाशकीय निवेदन.. विज्ञान का यह काल यन्त्रयुग के रूप में पहचाना जाता है । कई दिशाओं में विस्तरते इस विज्ञान ने सेंकडों किस्म के यन्त्र मानव जाति समक्ष सुलभ कराए हैं। यदि मानव उनका दुरुपयोग न करे और सही सदुपयोग करे तो इन यन्त्रोंद्वारा अनेक गुना उपकार भी कर सकता है । मुद्रक यन्त्रों का उदाहरण लीजिए। आज मुद्रण पद्धति का सारा स्वरूप ही बदल गया है । विजाणु युग में और बेहतरीन मुद्रण पद्धतियाँ आई हैं । व्यक्ति के बोलते ही समूचे विश्व में लेखन सामग्री फैलाई जा सकती है। योगानुयोग पूज्य पंन्यास प्रवर श्री अरुणविजयजी गणिवर्य म. सा. का चातुर्मास हमारे श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वे. मू. संघ, अक्कीपेठ, बेंगलोर में हुआ। पूज्यश्री काफी अच्छे जाने-माने विद्वान संत हैं । सभी धर्मों एवं दर्शनों के तुलनात्मक अभ्यासी हैं। दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में तुलनात्मक दृष्टि से संशोधन करते हुए शोध-प्रबंध भी लिख रहे हैं । आप समस्त जैन शासन में एक ठोस विद्वान के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । स्व-पर शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता हैं । कई तात्विक विषयों की सचित्र पुस्तकें आपने लिखी हैं, जिसका काफी जिज्ञासू अध्ययन-अभ्यास के रूप में पढ़ रहे हैं। ___ वर्षों से शिक्षण शिबिरों का आयोजन करते हुए आप लेखन भी काफी अच्छा करते हैं । आप कुशल प्रवचनकार एवं सिद्धहस्त लेखक भी हैं । सचित्र प्रवचन एवं लेखन शैली आपकी अनोखी विशेषता है । अक्कीपेठ के चातुर्मास में पूज्यश्री ने शिबिर के साथ १७ रविवारीय जाहीर प्रवचनमाला भी स्वतन्त्र रूप से चलाई । १४ गुणस्थान विषयक जाहीर प्रवचनों की इस श्रेणी को “आध्यात्मिक विकास यात्रा" का शीर्षक दिया गया । पूज्यश्री के इन अनमोल प्रवचनों को चारों तरफ हजारों जिज्ञासुओं तक पहुँचाकर सम्यग्ज्ञान की आराधना की जाय ऐसी पवित्र भावना से हमारे श्री संघ के विश्वस्तगणने...उसे पुस्तकारुढ करने का निर्णय किया। ___ पूज्यश्री प्रवचन में ब्लेक बोर्ड पर इस कठिन जटिल तात्विक विषय को समझाकर स्वयं ही लिखकर देते गए। परिणामस्वरूप लगभग १५०० पृष्ठ के दलदार ग्रन्थ को हम तैयार कर सके । सुंदर कागज पर, आकर्षक मुद्रण आधुनिक शैली का कराया । सचित्र ग्रन्थ निर्माण किया । पूज्य श्री गुरुदेव की यह प्रवचन प्रसादी देश-विदेश में सर्वत्र पहुँचाने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ। विशेषरूप से हिन्दी भाषा में हिन्दीभाषी जनता के लिए शायद यह अपने किसम का प्रथम ही ग्रन्थ पाठकों तक पहुँचाने का सौभाग्य हमें प्राप्त

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