Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01 Author(s): Arunvijay Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP SanghPage 12
________________ शिखरबंधी जिनालय का खातमुहूर्त पूज्य गुरुदेवश्री ने राजस्थान सुमेरपूर के सुप्रसिद्ध शिल्पशास्त्र विशारद हेमराजजी गंगाधर सोमपुरा को बुलाया । और भव्य शिखरबंधी जिनालय बनाने का नक्षा बनाया गया । नीचे भूमिगृह (तलघर) ऊपर मुख्य मूलनायक का जिनालय तथा ऊपर शिखर में भी गर्भगृह इस तरह तीन मंजिली शिखरबद्ध विशाल रंग मण्डपवाला जिनालय बनाने का निर्णय हुआ । नक्षा ट्रस्ट मण्डल में पास किया गया । ; मद्रास वेपेरी में चातुर्मास बिराजमान पूज्य पंन्यासजी म.सा. की प्रेरणा से श्रीमान शा. भभूतमलजी एवं कान्तिलालजी आदि ने खातमुहूर्त - भूमिपूजन तथा शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकाल कर दिया । तदनुसार २१ - २-९४ के शुभ मुहूर्त में प. पू. आचार्य देव श्री स्थूलिभद्रसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में भूमिपूँजन खात - मुहूर्त (खननविधि) सोल्लास कराया गया । हमारे श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वे. मू. संघ अक्कीपेठ के संघ संस्थापक पू. गुरुदेव श्री अरुणविजयजी म.सा. आदि मुनिमण्डल मद्रास से विहार करके बेंगलोर पधारे । पूज्यश्री की निश्रा में शिलान्यास के सुंदर अनुमोदनीय चढावे हुए । सोमपुरा श्रीमान शा. हेमराजजी गंगाधरजी ने सुंदर आकर्षक नौं शिलाएं शिल्प शास्त्रानुसार बनाई । और शुभ मुहूर्त में शिलान्यास महोत्सव मनाया गया । प.पू. आचार्यश्री स्थूलभद्रसूरि म.सा. भी पधारे एवं पू. गुरुदेव श्रीअरुणविजयजी म.सा. आदि मुनि मण्डल की संयुक्त निश्रा में शिलाओं की स्थापना विधिपूर्वक हुई। बेंगलोर के सुप्रसिद्ध धार्मिक शिक्षक श्री सुरेन्द्रभाई शाह ने सुंदर विधि विधान कराया । पू. गुरुदेव की प्रेरणा से संस्थापित श्री वासुपूज्यस्वामी जैन सेवा मण्डल ने सुन्दर व्यवस्था के आयोजन में अपनी सेवा प्रदान की । सर्वप्रथम चैत्री औली की आराधना पू. गुरुदेव पंन्यासजी म.सा. की प्रेरक प्रेरणा से उनकी निश्रा में श्री संघ ने सर्वप्रथम बार संघ में चैत्री आयंबिल की शाश्वती ओली करवाई । करीब २५० से ३०० आराधक आत्माओं ने नवपदजी की आयंबिल की ओली की आराधना की । साथ ही शिलान्यास विधान होने से संघ ने अष्टान्हिका जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव का सुंदर आयोजन किया था । सर्वप्रथम चातुर्मास हमारे श्री संघपर जिनका महान उपकार है ऐसे हमारे श्री संघ संस्थापक पूज्य गुरुदेव पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. को हमारे श्री संघ ने सर्वप्रथम चातुर्मास अक्कीपेठ में करने की विनंती की । यद्यपि पूज्यश्री को श्री हथुण्डी राता महावीरजी तीर्थ की प्रतिष्ठा 3Page Navigation
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