Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01 Author(s): Arunvijay Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP SanghPage 19
________________ स्थित “श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र – संस्था” की तरफ से अन्य ५०० प्रति इस तरह कुल मिलाकर ३००० प्रति का प्रकाशन कराया गया। हमें इस बात का विशेष हर्ष है कि हिन्दी भाषी प्रजा की जिज्ञासा को संतोषने के लिए और उसमें भी विशेषकर दक्षिण भारत में उत्कृष्ट कक्षा के हिन्दी साहित्य की जो बहुत वर्षों से कमी है उस क्षतिपूर्ति में सहयोग देने के लिए ऐसा ऊँचा ग्रन्थ लगभग १४०० पृष्ठों का, डेमी साइज में, सुंदर चित्रों से भरा सचित्र साहित्य, वह भी तीन भागों में हमारे श्री संघ ने प्रकाशित करने की योजना की । जिसके फल स्वरूप आज प्रकाशित करते हुए हम गौरव अनुभव करते हैं। हमारे श्री संघ के लिए सर्व प्रथम प्रकाशित प्रस्तुत ग्रन्थ एक विशेष गौरव एवं आनन्द का विषय है । इसी के साथ साथ हमारे श्री संघ के चातुर्मास कालावधि में अन्य भी प्रकाशन "महावीर वाणी" आदि के हुए हैं । यह और भी विशेष आनन्द की बात है। जैन ध्यान-योग साधना क्लास___पूज्य गुरुदेव श्री ने चातुर्मास प्रवेश करके प्रातःकालीन “जैन ध्यान-योग साधना" की क्लासें चलाने की शुभ शुरुआत की । जैन पद्धति से ध्यान-योग की साधना सिखाने से कई भाग्यशालियों को काफी अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। सुबह ही सुबह चलती इस क्लास में अनेक भाग्यशाली नियमित आते थे। सामूहिक धर्मचक्र तप की आराधना____ तपश्चर्या करने के लिए उत्तम ऋतु चातुर्मास है। पूज्यश्री ने श्री संघ में ८३ दिन चलने वाले 'धर्मचक्र' तप की आराधना प्रारंभ कराई । श्रावण वदि में प्रारम्भ हुई इस धर्म की सामूहिक तपश्चर्या में श्री संघ में से करीब ६५ आराधक तपस्वी जुडे । कार्तिक वदि में तपश्चर्या की निर्विघ्न परिसमाप्ति हुई। सामूहिक पारणे हुए। श्री संघ की तरफ से तपस्वीयों का सम्मान किया गया। चातुर्मासिक क्रमिक अट्ठम___चातुर्मास के प्रारम्भ काल से ही श्री संघ में “सांकली अट्ठम" की तपश्चर्या आरम्भ हुई । अनेक बहनों व भाग्यशालियों ने क्रमशः अट्ठम किये । प्रतिदिन एक अट्ठम के पच्चक्खाण होते थे। श्री संघ में चढावे हुए और चढावे का लाभ लेकर भाग्यशालियों ने तपस्वीयों का विशेष सन्मान किया। 10Page Navigation
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