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हुए भी यदि विभिन्न अनुशासनों से सम्बद्ध श्रेष्ठ विद्वतजनों का सहानुभूति एवं अनुग्रह न प्राप्त होता तो कदापि राष्ट्रीय संगोष्ठी को समुचित प्रसिद्धि न मिलती। ऐसे विद्वतजनों, आगत अतिथियों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के प्रति हृदय से अनुग्रहीत हूँ। अपने जिज्ञासु एवं शोधात्मक अत्कृष्टता का परिचय देते हुए शोध लेख प्रदाताओं के प्रति धन्यवाद एवं बधाई समवेत ज्ञापित करते हुए मैं हर्षित हूँ। धन्यवाद इसलिए कि सभी के प्रस्तुत श्रेष्ठ शोध पत्र 'कार्यवृत्त' के माध्यम से मुझे सम्पादित करने का अवसर मिला। साथ ही बधाई इस हेतु कि आप सभी का शोध पत्र प्रकाशित हुआ है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यवृत्त के आयोजन में आर्थिक पक्ष महत्वपूर्ण होता है, परन्तु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा प्राप्त अनुदान से उत्साहित होकर हम सभी पूर्ण मनोयोग से कार्यक्रम सम्पादित किये। इसके लिए इन दोनों अनुदान प्रदायी संस्थानों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रस्ताव प्रेषण से लेकर कार्यक्रम की पूर्णता तक सम्पूर्ण अवरोधों को क्षणेक में समाधान देने वाले तत्कालीन कार्यवाहक प्राचार्य आदरणीय डॉ० अर्जुन राम त्रिपाठी का मैं हृदय से आभारी हूँ। सम्माननीय सचिव प्रबन्ध समिति श्री विनोद कुमार रूंगटा जी का मैं हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल सम्पादन में अपनी सहज स्वीकृति प्रदान कर कार्यक्रम हेतु कृपा पूर्ण अनुमति प्रदान किया। महाविद्यालय परिसर में कार्यक्रमों के लिए सदैव प्रोत्साहित करने वाले युवा सचिव, प्रबन्ध समिति का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। __कार्य संस्कृति के मार्ग पर सर्वथा प्रतिश्रुत रहने की दीक्षा एवं आशीर्वाद देने वाले परम सम्माननीय डॉ० रवीन्द्र देव उपाध्याय पूर्व प्राचार्य एवं अपने शैक्षिक संरक्षक डॉ० कुंवर बहादुर सिंह कौशिक का मैं हृदय से वंदन एवं अभिनन्दन करता हूँ। इन दोनों शैक्षिक संरक्षकों का मौन आधार एवं आशीर्वाद सदैव मुझे प्राप्त हो यही अभिलाषा है।
महाविद्यालय के वरिष्ठ सहयोगी डॉ राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय जी, डॉ० रामनारायण त्रिपाठी जी, श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी जी एवं डॉ० ओमप्रकाश