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________________ %ACHALEGAROO नयसारने अने धनासार्थवाहने अनुक्रमे २७-१३ तेरभवनी नियमित मर्यादा पर लावनारा श्रमणभगवंतरूप समर्थवक्तानो योग लाभदायी नीवव्यो छे, समर्थवक्तास्वरूप श्रमणभगवन्तोनी अने श्रद्धालु एवा श्रोताओनी परंपरा पण अनादिकालनी छे, ते 15|| मान्या वगर छूटको नथी. ते माटे सूत्रकृताङ्ग भा. १ लानी प्रस्तावनामा १ उपदेशक प्रथम के उपदेश प्रथम !, २ उपदेशकपणानी योग्यतावाला तीर्थकर, अने ३ उपदेशक तथा उपदेश पण अनादिना, आत्रण पेरेयाक पृ. ६-७वांचकोऐ वाचवा-विचारवानी जरुर छे. आथी शासनसंस्थापक श्रीवर्द्धमानस्वामीजीन जीवन स्मृतिपथमा स्थिर थाय छे.. . आधसदुपदेशक शासनमान्यप्रणालिका प्रमाणे अनन्तानन्त चोवीशीओ थयेली छे अने भाविमा थशे, तेथी दरेक दरेक चोवीशीमां ते ते शासनना आधसदुपदेशक तरीके ते ते तीर्थंकरोनेज मानी शकाय. शासननी स्थापनामा अर्थात् गणधरभगवन्तोनी गणधरपदे स्थापनामां अने चतुर्विधसंपनी स्थापनामा विश्ववन्ध तीर्थकरोनो महान् हिस्सो छे. “हुं पाम्यो ते रीतिए जगत्ना जीवो म्हारी विद्यमानतामा अने म्हारो मोक्ष थया पछी पण तेज रीतिने अनुसरवावाळा नीवो पामता रहे ते माटे आ शासननी स्थापना तेओश्री करे छे. तीर्थकरनामकर्मनो वास्तविक पुण्योदय तो गर्भथी शरु छे, पण तीर्थकरनामकर्मनी वास्तविक प्रवृति तो केवलज्ञाननी प्राप्ति | थया पछी शरु थाय छे. ____ जगत्ना जीवोने सदुपदेशद्वाराए तारवानी अने शासनरसिक बनाववानी भावनाथी जे तीर्थकरनामकर्म बांध्यु छे, तेनी । वास्तविक प्रवृत्ति २८ वर्ष समय उपरांतनी लगभग छे. साथे साथे शासनमर्यादा पण समजी लेवानी जरुर छे के-च्हाय जेटलो SECORKSHARABAR A5%
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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