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प्रस्तावना
आद्यसदु
पदेशक।
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नवाङ्गी-ता सदुपदेशथी लाभ थवानो होय परन्तु तीर्थंकरो कैवल्यज्ञान पामीनेज उपदेश दई शके छे, अन्यथा सदुपदेशक तरीके सदुपदेश [ १०. देवानुं पारमार्थिक कार्य पण करताज नथी. आ प्रसंगने सूत्रकृतांगना प्रथम भागनी प्रस्तावनामां विस्तारपूर्वक आलेखेल छे... भीबाता- आद्यसंचालकधर्मकथाङ्गे वर्तमानशासननी स्थापना करनार श्रीवर्द्धमानस्वामीने वैशाखसुद १० ना दिवसे ऋजुवालिकानदीना किनारे केवलज्ञान थयु.
| केवलज्ञानी श्रीवर्द्धमानस्वामीए तीर्थकरनामकर्मनी वास्तविकप्रतिरूप देशना दीधी, अने ते देशनानुं शासनमान्य फल बेसबुं ॥५०॥
जोईए ते न बेहुं तेथी ते देशना निष्फल गई, बीजे दिवसे एटले वैशाखसुदि ११ ना दिवसे प्रभु विहार करीने महसेन वनमा गया, समक्सरणनी रचना थया बाद चौदशो चुम्मालीश साथे अप्रेसर अगीआर ब्राह्मणो( इन्द्रभूति विगेरे ब्राह्मणो )नु आवq थयुं, वेदना पारंगत ते ब्राह्मणोने रही गयेली शंकानुं समाधान थतां तेओ बधा विश्ववन्यप्रभु पासे अनुक्रमे दीक्षा ग्रहण करे छे. दीक्षित थयेला अगीआर अग्रेसरो शासनमान्य विधि प्रमाणे अनुक्रमे तेओ " उपन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा;" आ त्रिपदी पामीने अन्तमुहूर्तमा द्वादशाङ्गीनी रचना करे छे, अने प्रभु चतुर्विधसंघनी स्थापना करे छे. शासननु संचालन कार्य श्रुतज्ञानने अवलंबीने छे, अने तेथी शासन संचालनमा पंचमगणधरभगवंत तथा तेओश्रीनी द्वादशांगी मुख्य भाग भजवे छे ते भूलवा जेवू नथी.
वर्तमान-शासनपति-श्रीमहावीरमहाराजाना समयमां नवगणधरो केवलज्ञान पामीने मोक्षे जवानी तैयारीमा हता त्यारे ते बधाए पोताना सघलाए परिवारने दीर्घायुषी-पञ्चमगणधर भगवन्त श्रीसुधर्मास्वामीने सुपरत कों, अने शासनपतिना कालधर्म पछी ( मोक्षे गया पछी) प्रथम गणधर श्रीइन्द्रभूतिए( गौतमे) पण कालधर्म पाभीने पोताना सधळाए परिवारने पण पक्षमागणधस्ने सुपरत कर्यो.
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