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________________ 4. 4 CK % % 4% आधी श्रीमहावीस्महाराजाना समयची अने कालधर्म पाम्या पछी पण सर्व साधु-साध्वीओ तेओभीमा सन्तानीयापणे वर्ने छ ए शास्वप्रसिद्ध वात छे. एटलं ज नहिं पण दशगणधरो मोक्षे गया पछी शासनमा तेओश्रीनी ( पञ्चमगणधर श्रीसुधर्मास्वामीनी ) द्वादशाङ्गी प्रवर्ती छे-के जेना प्रभावे २४७८ वर्षना व्हाणां वही गयां अने लयभग हजु बीजां अढार हजार उपरान्तना व्हाणां वावां बाकी छे, छतां पण पू. आचार्य भगवन्तो वर्तमानमा स्वपरकल्याणार्थे ते द्वादसंगीना सूत्रादिनी अमोघ वर्षा वर्षाकी रह्या छे अने वर्षावशे ते बधो प्रताप पंचमगणधरभगवंतनी द्वादशांगीनो छे. मोक्षमार्गना अभिलाषी साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाए स्वपरहितकर मोक्षमार्गनी आराधनामां अस्खलितगमन करीने इष्ट रिद्धिसिद्धि साधवी होय तेओने आ द्वादशाङ्गी अने द्वादशाङ्गीने अनुसरनारा जैनागमो एज परमाधार छे. आ भलामणथी सदा सजाग रहेवानी अनिवार्य जरुर छे. आथीज शासनना संचालनना मुख्य हेतुरूप पंचमगणधरनी द्वादशांगी छे, अने तेथीज शासनना आद्यसंचालक तरीके तेओश्रीन आदरसत्कार--बहुमानादि करीए तेटलां ओछांज छे. सुधर्मास्वामीजीनु जीवन... .. आसन्नोपकारी-अन्तिम-श्रीवीरविभुना सुशिष्य-पंचमगणधर-भगवान् श्रीसुधर्मास्वामीजी छे, अने आ अन्धमां आवेला सर्व सूत्रोना रचयिता पण तेओ छे, एटले तेओश्रीना जीवननी संक्षिप्त नोंधने स्मृतिपथमा लईने वीर्योल्लासनो वेग वधारतापूर्वक आगळ वधीए. प्रभुश्रीमहावीर-महाराजानी पाटपरम्पसमां ते पांचमी पाटे छे, अने तेओश्रीन स्वरूप आ प्रमाणे छे, कुल्लागामना एक लगाममां अग्निवैश्यायन गोत्रवाळा धम्मिल बामण रहेता हता, अने तेमने भदिला नामनी स्त्री हती. आ बन्नेने संसारनी लीलाना अनुभवमा आगळ वधतां भद्दिलाए एक पुत्रने जन्म आम्यो, अने तेओए ते पुवने विद्याभ्यासादिमा अति कुशलता प्रास करवा माटे ********
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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