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नवाङ्गी
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श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गे
॥५१ ।।
विद्यागुरुने सुपरत कर्यो. पितानी आज्ञाथी पोते विद्यागुरु पासे रहीने विवेक - विनयपूर्वक चौद विद्यानो पारंगत बन्यो एटलुंज नहिं पण तेओनी ( आर्यसुधर्मानी ) निश्रामां रहीने विद्या संपादनना अर्थी - पांचसो शिष्यो अध्ययन करता हता. पचास वर्ष लगभग पठनपाठन, वादविवाद अने ब्राह्मणकुळने अनुसरती क्रियाकाण्डमां व्यतीत कर्या. एक अवसरे अपापा नामनी नगरीमां सोमिल ब्राह्मणने घेर यज्ञहोमनी क्रिया करवा कराववा माटे देशपरदेशथी ब्राह्मणो आवेला छे, ते सर्व ब्राह्मणोमां आर्यइन्द्रभूति, आर्य अग्निमूति, आर्यवायुभूति, आर्य व्यक्त अने आर्यसुधर्मादि अगीआर ब्राह्मणो आदि मोटी संख्यामां अनेक जातिना ब्राह्मणो एकठा मझ्या छे, आ अवसरे केवलज्ञानी विभु श्रीमहावीर - महाराजा ऋजुवालिकानदी पासेना क्षेत्रमांथी विहार करीने महसेनवनमां पधार्या छे, - एटले देवोए प्रभुश्रीवीर पधारे छे माटे समवसरणनी रचना करी छे. आकाशमार्गे आवता जता विमानोने अने देवदेवीओना परिवारने निहाळीने यज्ञनी महत्ता माननारा आगेवान ब्राह्मणो अने तेमनो सघलोए परिवार आश्चर्य चकित थाय छे, एटलं ज नहिं पण आ बधां विमानो, देवेन्द्रो, देवो, देवीओ अने सघलोर जनसमुदाय अमारा यज्ञमां नहिं आवतां भगवान श्रीमहावीर महाराजाने वन्दन करवाने अने वाणी श्रवण करवाने जाय छे, आ वातनो निर्णय करीने आगेवान ब्राह्मणगौतम गोत्र वाळा आर्यइन्द्रभूति सर्वज्ञपणाना अहंभाव साथे भगवान् श्रीमहावीर महाराजा साथै वाद करीने जीतवा माटे जाय छे, अने छेवटे केवी रीते जीताह जाय छे तेनुं संक्षिप्तवर्णन श्रीकल्पसूत्रना गणधरवाद नामना प्रसिद्ध व्याख्यानावसरे चतुर्विधसंघ नियमित श्रवण करे छे, गणधरवाद-विवाद सम्बन्धी शंका समाधान विस्तारथी जाणवानी अभिलाषावाळाए श्री आवश्यक सूत्र, श्रीविशेषावश्यका दि प्रौढगन्थोनुं वांचन, मनन, परिशीलन करवुं जरूरी छे, आर्यइन्द्रभूति पोतानी घणा वर्षोनी जूनी शंकानुं समाधान पामी
प्रस्तावना सुधर्मास्वामीजीनुं जीवन ।
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