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जीताइ गया पछी पोताना पांचसो शिष्योनी साथे दीक्षित थाय छे, अने प्रथम गणधर तरीके प्रसिद्ध थाय छे. त्यारपछी अनुक्रमे पोताना भाइ अग्निभूति पोताना ज्येष्ठ बान्धवने पाछो लइ जवाने जीतवानी मुरादथी भगवान् श्रीमहावीर पासे आवे छे. अने तुरत पोतानी शङ्काना समाधान साथे ते पण जीताइ जाय छे. पोताना पांचसो शिष्य साथे दीक्षा लइने बीजा गणधर तरीके प्रसिद्ध थाय छे, ते पछी अमारा वडील भाइ आर्य-इन्द्रभूति अने आर्य अग्निभूतिए " जेओने मुरब्बी तरीके स्वीकार्या तेओश्री म्हारा पण मुरब्बी छे " ए भावथी अनुक्रमे आर्यवायुभूति, आर्यव्यक्त अने आर्यसुधर्मा विगेरे आगेवान ब्राह्मणो आवे छे, तेओना हृदयना खूणामा छुपाइ रहेली शंकाओने प्रभु महावीर जणावे छे, अने सर्वनी शङ्काना समाधान तेओना वेदना ते ते शंकितपदोद्वारा वास्तविक अर्थन अनुस्यूत सम्बन्ध साथे निवेदन करीने शंकाना निरसनपूर्वक समजावे छे, अन्ते आगेवान अगीआर ब्राह्मणो पोताना शिष्यादि ४४००) ना परिवार साथे दीक्षित थाय छ; ए वात शासनमान्य-शास्त्र सुप्रसिद्ध छे. आ अवसरे अनुक्रमे चार गणधरोनी जेम सकल अंगादिना रचयिता आ पञ्चमगणधर भगवान् श्रीसुधर्मास्वामीजी छे तेओनी उम्मर पचास वर्षनी छे. दीक्षा लीधा पछी तेओए श्रीस वर्ष पर्यन्त श्रीवीरविमुना चरणकमलनी उपासना करी छे, अने श्रीमहावीरमहाराजाना निर्वाण पछी बाणुं वर्षे एटले बाणु वर्षनी उम्मरे विशुद्ध भावनाथी भावित थयेला ते पञ्चमगणधर भगवानने चारघनघातीकर्म तूटवाथी केवलज्ञान प्रगट थाय छे, केवलज्ञानना पर्यायथी विभूषित थयेला भगवान् श्री सुधर्मास्वामीजीए ग्रामानुग्राम विहार करीने अनेक भव्योनो उद्धार कर्यो, | अने आठ वर्ष सुधी केवली पर्याय पूर्ण करीने एक महिनाना चोविहार उपवासनी घोर तपश्चर्या तपीने, पादपोपगमन नामना
अनशनने अनुसरीने, अने सकल कर्मनो क्षय करीने भगवान् श्रीसुधर्मास्वामीजी मोक्षे गया, अने भगवान् श्रीमहावीरमहाराजना
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