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________________ HA नवाङ्गी ० ० भीज्ञाताधर्मकथाङ्गे 4% A4% प्रस्तावना अंतिम| केवलीनी जीवन % चर्या। % % मोक्षगमन पछी बे गणधरो जीवता हता, जेमां १ आर्य श्रीइन्द्रति प्रथम गणधर अने २ आर्य श्रीसुधर्मास्वामीजी पंचमगणधर | हता. पूर्वना नवगणधरोए जेम पोतानो शिष्य-परिवारादि श्रीसुधर्मास्वामीजीने भळाव्यो हतो, तेम प्रथमगणधरभगवन्ते पण पोताना सघला परिवारने श्री सुधर्मास्वामीजीने भळावीने पोते मोक्षे गया, एटले ते अवसरनी शरूआतथी अद्यापि पर्यन्तना जे साधुसाध्वीओ छे ते बधाए श्रीआर्यसुधर्मास्वामिजीना शिष्य-संतानो छे. जुओ-स्थविरावलिमां आ प्रमाणे उल्लेख छ-" जे इमे अज्जताए समणानगंथा विहरति । एएणं सवे अजसुहम्मस्स अणगारस्स आवचिजा ॥" श्रीद्वादशाङ्गीना रचनावसरे-स्थले स्थले भगवान् श्रीसुधर्माजी पोताना शिष्य श्रीजंबूस्वामीने उद्देशीने कथन करे छे, माटे | तेओश्रीना जीवनने वांचीने, विचारीने अने परिशीलन करीने अनुमोदनरूप अमृतनुं आस्वादन करीए !!! अंतिमकेवलीनी जीवनचर्या पञ्चमगणधर भगवान् श्री सुधर्मास्वामीजीना प्रथम सुशिष्य के जे वर्तमान शासनमां अंतिम केवली श्री जम्बूस्वामीजी कहेवाय छे, सूत्रकार श्रीपञ्चमगणधर छे, अने सूत्रथी अनन्तर आगमने प्राप्त करनार श्रीजम्बूस्वामीजी होवाथी तेओश्रीनु जीवन जाणवू जरूरी जाणीने अत्र विचाराय छे. लगभग २४७७ वर्षोना व्हाणां वीती गयां, छतां पण आ महापुरुषोनी जीवन गाथाओना यशागान माइए छीए, त्यारे भृतकालने भृली जबाय छ, अने तेओर्नु भृतकालनु जीवन वर्तमानकालना साक्षात्कारोनो अनुभव कराचे छे. आ जम्बूद्वीपना दक्षिणाई भरतक्षेत्रमा मगधनामनो देश छे, अने तेनी राज्यधानी राजगृहनामना नगरमा हती ते नगरमां अति धनवान अने ओट वगरनी संपत्चिना भव्यतरंगोना अबुझ्चो अभिधीऋषम अने धारिकी करम हतां. संसारनी लीलानो अनुभव % % AASHAR %e F ॥५२॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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