SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करतां धारिणीनी कुक्षिमां देवलोकमांथी च्यचीने एक देव गर्भपणे उत्पन्न थयो, अने ते गर्भनो परिपक्ककाले पुत्रपणे जन्म थयो. स्वप्ना अने दोहदना भाक्चे अनुसरतुं श्रेष्ठिना सगांवहालांए मळी जम्बू एवं नाम स्थान कयुं. अने ते जम्बूकुमारे श्रीसुधर्मास्वामिजीनी प्रथमतः देशना श्रवण करीने सम्यक्त्वसहित शीलव्रत अंगीकार कर्यु. श्रीजम्बूस्वामिने परणवानी इच्छा नहोती, छतां मातपिताना अतिआग्रहथी तेओ आठ कन्याओने परण्या, परन्तु ते नवोढा स्त्रीओनी स्नेहवर्धक वाणीथी लेशभर व्यामोहित थया नहिं, कारण के संसारसमुद्रनो पार पामवा माटे जेणे सम्यक्त्व अने शील नामना बे तुंबडा ग्रहण कर्या छे, ते श्रीजम्बूस्वामीजी स्त्रीरूपसरिताओमां डूबी शकता ज नथी. हवे रात्रिमां ते स्त्रीओ साथै संसार छोडवा नहिं छोडवा सम्बन्धनी अनेक प्रकारनी शंकाओना समाधान आपीने, अने सुन्दर विचारविनिमय करीने ते आठे स्त्रीओने प्रतिबोध पमाडीने दीक्षानी अर्थिनी बनावी, एटलुंज नहिं पण तेज अवसरे पोताना मकानमां रात्रिमां प्रभवनामनो चोर बीजा पांचसो चोरो साथे चोरी करवा माटे आव्यो हतो, ते बधाए स्त्रीओ साथ थतो विनिमय श्रवण करीने अने स्त्रीओसहित ९९ नवाणुं क्रोडनी संपत्तिने छोडी जनार छे ते ए वातने विवेकपूर्वक जाणीने हृदयमां ते संबंधी विवेकपूर्वकनो विचार करीने चोरी करवा आवेला ते चोरे विनाशिसंपत्तिओनो मोहमूकीने अविनाशि- महामूल्यबालां त्रण रत्नोरूपी संपत्तिनी चोरी करवानो निर्णय कर्यो, सवारमां पांचसो चोर, आठ स्त्रीओ, आठे स्त्रीओना मातपिता, पोतानाये मातपिता अने पोते मलीने कुल्ले ५२७ पांचसो सत्तावीसनी संख्यामां दीक्षित थया भगवान् सुधर्मास्वामीजीनी पासे श्रीजम्बूस्वामी प्रथम शिष्य थया, अने तेम्नी ( जम्बूस्वामीजीनी ) पाटे श्रीप्रभवस्वामीजी आव्या श्रीजंबूस्वामीजी सोल वर्ष गृहस्थाश्रममां रहीने, ते पछी दीक्षा लईने, वीश वर्ष सुधी श्रीसुधर्मास्वामीजीना चरणकमलनी उपासना करीने
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy