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________________ नवङ्गी ० पृ० श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गे ॥ ४९ ॥ मी साधेनुं सुवर्ण अलंकारने योग्य बनी शकतुं नथी, बजारमांथी वेचातां लावेल शाक- अनाजनो भोज्य तरीके भोगवटो करी शकतो नथी, तेवी रीते माताना गर्भमांथी जन्मेलो बालक स्व-पर जीवन माटेनी योग्यता धरावी शकतो नथी. स्वच्छ हीरा साथे मिश्रित • पत्थरा माटी विगेरेने विवेकपूर्वक दूर कर्या विना, शाकादिना सडेला भागो अने दींटा वगेरेने विवेकपूर्वक दूर कर्या सिवाय, अने 1. अनाज साथेना माटी - कांकरा - तणखलां-फोतरां-सडेल दाणा विगेरेने विवेकपूर्वक दूर कर्या विना क्रमशः शोभाववा तरीकेनो अने भोगवा माटेनो उपयोग थवो ए लगभग नकामो छे, तेवी रीते जन्मेला बालकने समर्थ वक्ताना योग साधे वीतरागनी वाणीना श्रवण-मनन- परिशीलनथी हेय-उपादेयरूप पवित्र संस्कारोथी संस्कारिक थवानी साथै विशिष्ट विवेकने वर्तनमां मूक्या वगर मलिन संस्कारो दूर थतां नथी, अने जीवनमां स्वपर हितकर संस्कारो आविर्भाव थतां नथी. समर्थवताना समागममां आव्या सिवाय श्रद्धालु श्रोताओ कल्याणकारी मार्गमां अविरत कूच करी शकतोज नथी. व्यवहारमां पण जेवी रीते हुंशियार कारीगरना हाथमां आवेल निर्माल्य वस्तु अमोघ मूल्यवाळी बने छे, तेवीरीते समर्थ वक्ता तीर्थंकर गणधर - पूर्वघर श्रमणादि भगवंतो पण नीच-नीचतरनीचतम उत्थानमा रहेला जीवोने उच्च उच्चतर उच्चतम स्थान प्राप्त करावे छे. आथीज “ श्राद्धश्रोता ० " वीतरागस्तोत्रना आ पद्यनो परमार्थ अत्र सफलभूत बने छे. सर्वज्ञकथित उपदेशामृतनुं आस्वादन करावनार शासनमान्य श्रमण भगवन्तोनो योग मले छे त्यारे आत्मा अनादिकालनी रखडपट्टीना प्रभावे करेला अनेकानेक जन्म-मरणरूप अनंतभवोनी परंपरानुं नियमन करवाने भाग्यशाली बने छे. अनंतानन्त जन्ममरणनी परंपराने भोगवनारा तीर्थंकरोने पण मर्यादित भवोनुं नियमन करावनार पण श्रमण भगवन्तोना योगनोसमागमनो प्रभाव छे. प्रस्तावना समर्थ वानो योग । ॥ ४९ ॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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