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________________ LEC%% तपोधर्म, अने संवरभावने धारण करवावाळो संजम ए त्रण जे जीवने शासनमान्य मर्यादापूर्वक प्राप्त थाय छे त्यारे जिनेश्वरभगवंतना शासनमा कथन करेलो मोक्ष थयो एम कहेवाय छे. अंतिम साध्यनी सिद्धि करनारने संयम-तपोधर्मने स्वीकार्या छतां सम्यग्ज्ञान वयर अथवा तो सम्यग्ज्ञानी भगवन्तनी निश्रा स्वीकार्या विना इष्टफलनी प्राप्ति थतीज नथी. “आश्रवना अनेक द्वारोथी आवतां कर्मोने रोकवा माटे संवररूप संयमनी सेवना अने अन्मदि अनंतकालथी भेगां करेलां क्लिष्टकोने निर्मूलन करवा माटे अमोघसाधनरूप तपोधर्मनी आराधना वगरनुं जीवन निरर्थक छे, निरर्थक नहिं पण अनर्थकारी छे. " आ श्रद्धा थकी, आ प्रतीति थवी अने आवीज रुचीना रंगमा रंगाइ जवु-ओतप्रोत थर्बु ते वीतराय वाणीना अवम उपर आधार राखे छे. अत एव मनुष्यमां वास्तविक-मनुष्यपणा तरीकेनी माणसाई आविर्भाव करवा माटे अने श्रद्धादि मुणोने विकस्वर करवा माटे वीतरागप्रणीत श्रवणनी अनिवार्य जरुर छे. "चचारि परमंगाणि, दुल्लहाणि इह जंतणो माणुसत्तं० इति उत्तराध्ययने"-चउरङ्गाध्ययने । भावार्थः-आ पद्यनो भावार्थ आ प्रमाणे छे-अब संसारमा परिभ्रमण करनारा जीकोने आ चार उस्कृष्ट साधनो प्राप्त करवा ते दुर्लभ छे. १ मनुष्यपणुं, २ श्रवण, ३ श्रद्धा अने ४ वीर्योल्लासनी वृद्धिपूर्वक संयमनु सेक्न. आधी मनुष्यपणामा उच्च-उच्चतम-उच्चतम पदनी प्राप्ति अर्थे आत्महितकर संस्कारशून्यात्माने संयमादिची सौरमथी सुवासिक राख्वामा सशकथित वाणीना श्रवणमनन-परिशीलननी अवश्यमेव जरूर छे. समर्थवक्तानो योग अनेक पल्चर साथे मिश्रित क्येल हीरानी खाणग्रंथी नीकळे होशे मुगटयां जली शकस्तो नयी, सोनानी खाममांकी नीकळेल,
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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