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________________ नवाजी खाताधर्म वृ० वृ० श्रीज्ञाताधर्मकथाले | कथाङ्गप्रस्तावना। ॥४८॥ ARRIERCE कदाच कोइ जीव मनुष्यना आयुष्यनो बन्ध विगेरे बांधीने मनुष्य थाय छे, परन्तु मानवजीवनने सफल करवानां साधन-सामग्रीसंयोगो प्राप्त करवां ते अतीव दुर्लभ छ, आथी शास्त्रकारो जणावे छ के-सानुकूल साधन-सामग्री-संयोगो प्राप्त थया छतां ते सर्वेने सफलीभूत बनावीने शासनमान्यरीतिए मानवजीवन सफल करवू एज मानवजीवन पाम्यानी महत्ता छ. पवित्र पुण्यनो प्रवाह अस्खलित जेना जीवनमा वह्या करे छे तेज महानुभावो आर्यदेश, उत्तमकुल, उत्तमज्ञाति, दीर्घआयुष्य, निरोगिशरीर, इन्द्रियोनी पूर्णता-पटुता, देवगुरुधर्मनी जोगवाई, वीतरागवाणीनुं श्रवण, विवेक अने विनयादि गुणगण संपदाओने प्राप्त करी शके छे, अन्यथा नहिं, एटलं ज नहिं पण प्राप्त थयेल सानुकूल संयोग-साधन-सामग्रीओद्वारा मोक्षमार्गनुं गमन अस्खलित थयां करे तेवी रीते तेने सफलीभूत बनाववी तेमा ज मानवजीवननी महत्ता साथे विशिष्ट बुद्धिमत्ता छे. भवणनी आवश्यकता मानवजीवननी महत्ता समजनारे अफर निर्णय करवो घटे छे के-“वीर्योल्लासपूर्वक संयममार्गे कूच कर्या विना अने विविध तपोधर्मने सेव्या विना मनुष्यजीवनना अंतिमसाध्यनी सिद्धि कोई पण जीवे करी नथी, करतो नथी; अने करशे पण नहींज." संयममार्गे कूच करनारने तथा विविध तपो धर्मनु सेवन करनारने सम्यक्ज्ञाननी अनिवार्य जरूर छे. कारणके ए त्रणेना ( सम्यज्ञान संयम-तपोधर्मना) सिवाय शासनकथित-मोक्ष थतोज नथी, जे माटे चौदपूर्वधर-श्रुतकेवलि-भगवान्-श्रीभद्रबाहुस्वामिजी जणावे छेनाणं पयासगं सोहओ, तबो संजमो अगुत्तिधरी। तिण्हंपि समायोगे मुक्खो, जिनशासणे भणिओ ॥ आ०नि० गाथा ॥ भावार्थ:-शासनमान्यमार्गने प्रकाश करनारुं ज्ञान, अनादि अनंतकालयी संचित करेलां कर्मने शोधक-कर्ममलने दूरनारो AE%AAAAE%ES
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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