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________________ * % % 100% थथल तारा शीचधर्मथौ तेवी रीते आत्मा शुद्ध थइ शके नहीं! आ प्रमाणेना जणावाथी शंकित थयेली चोक्खा परिव्रांजिका कई पण जवाब न आपी शकी अने मौन रही, आथी मल्लीकुमारीनी | दासीओ अनेक-अनेकप्रकारे तेनी हांसी करवा लागवाथी क्रोधथी धमधमती त्यार्थी ते निकली गामानुगाम फरती कांपिल्यपुरनगरमा आवी अने जितशत्रू राजा आगल शोचमूलधर्मनी प्ररूपणा करी राज्य अने अन्तेपुरीनी कुशलतानो वृत्तांत पूछ्यो. जितशत्रू राजाए कुशलता जणावी. अने पूछयु के-तमे घणा गामो नगरो वगेरेमा फरतां मारा जेवो स्त्रीओनो रूपवंतपरिवार कोइनो जोयो छे ! आवा प्रश्नंना जवाबमां जितशत्रू राजाने कुवाना देडका समान तेनी अन्तेउरी जणावी मल्लीकुमारीना एक पगना अंगूठानारूपना लाखमा भागे पण तारी कोइ राणीनु रूप नथी, आम कही ते परिव्राजिका गइ. आथी आश्चर्यने पामेला जितशत्रूराजाए पोतानी साथे लग्न करवानी कबूलात माटे पोताना दूतने मिथिलानगरीए कुम्भराजा पासे मोकल्यो. जितशत्रू वगेरे छए राजाओना दूतो मिथिलानगरीनी बहारना उद्यानमा आवी पोतपोताना तंबुओमां उतर्या पछी ज्यां कुम्भराजानी राजसभा छे त्यां गया अने बे हाथ जोडी विनयपूर्वक छए दूतोए पोतपोताना राजाओंनी वात जणावी, आ श्रवण करी अति कोपायमान थयेला कुम्भराजाए छए दूतोनो तिरस्कार को अने अपमान करी पाछले दरवाजेथी काढी मूक्या. अपमानित थयेला दूतोए पोताना स्थाने जई रूबरूमा पोताना अपमानो वगेरेनुं निवेदन पोतपोताना नृपतिने जणाव्यु. आ सांभळी छए राजाओए सलाह करी एकी साथे कुम्भराजा साथे युद्ध करी अपमाननो बदलो लेवा ठराव्यु. छए राजाओ युद्ध करवा माटे प्रयाण करी मिथिला राज्यना सीमाडे आव्या. HIREC%20%ASS A5 COST
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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