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नवाङ्गी
| परि० ५ -श्रीमल्लीअध्ययन| सारांशः।
श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गे
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कुम्भराजा पण युद्ध करवा माटे सन्मुख आव्यो अने युद्ध चाल्यु. छए राजाओना सामटा हल्लाथी हताहत थयेल कुम्भराजाए मिथिलाना दरवाजा बंध करावी दीधा. आथी छए राजाओए घेरो धाल्यो, कुम्भराजा तेओना घणा प्रकारे छिद्रोने जुवे छे पण छिद्र न प्राप्त थवाथी चिन्तातुर अवस्थामा एक वखत बेठा छे एवामां मल्लीकुमारी पिताजी पासे आवी विनीतभावे उभी रहेवा छतां चिन्ताग्रस्त अवस्थाना प्रतापे कुम्भराजाए आव्यानुं जाण्यु नहीं, मल्लीकुमारीए आवी अवस्था माटे पिताजीने प्रश्न कर्यो आथी आघन्त वृत्तान्त तेणीने नृपतिए कह्यो, मल्लीकुमारीए निर्भय थवानुं जणावी छए राजाओ पासे जुदा जुदा छुपी रीते दूतने मोकलो अने तमने आपशु एम कही गुप्तमागें प्रवेश करावो अने दरवाजा बन्ध छे तेमने तेम रहेवा द्यो, मल्लीकुमारीनी सलाहथी कुम्भराजाए तेम कराव्यु अने छए राजाने तेवी रीते प्रवेश कराव्यो..
पूर्वे ओझल-पडदामा राखेली सुवर्णमय-मस्तके छिद्रवाळी अने तेना पर कमलोना ढांकणवाळी प्रतिमाने आ मल्लीकुमारी छे एम धारी एकी नजरे जोता छतां उभा रह्या छे एवामा स्नान आदिथी पवित्र बनी तमाम अलंकारो पहेरेली घणी एवी दासीओथी परिवरेली मल्ली त्यां आवी अने प्रतिमा उपरर्नु कमलोनू ढांकण दूर कयु, ढांकण दूर था मरेला सर्प करतां पण अधिकतर दुर्गन्ध निकलवाथी छए राजाओ पराकमुख थया अने उत्तरीयवस्थी नाक बन्ध कर्या.
___ मल्लीकुमारी, जितशत्रुराजा वगेरेने पूछवा लागी के उत्तरीय वस्त्रथी नाक बन्ध करी परागमुखबाळा केम थया ! आ प्रश्नना उचरमां तेओ कहेवा लाग्या के-आ अशुभ गन्धथी अमे आम थया छीए । मल्ली कहेवा लागी के-आ प्रतिमामां ताजां अने मनोहर आहारादिनो पिण्ड हमेशां नाखतां आवा अशुभ परिणामवाळा पुद्गलो थई जाय छे, तो आ औदारिक शरीर-खेलाश्रव, वंताश्रव,
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