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________________ परि०५. सप्तमश्रीरोहिणीअध्ययन| सारांश नवाङ्गी ॥सप्तम-श्रीरोहिणीअध्ययन-सारांशः॥ ... राजगृहीनगरमां धन्यनामे सार्थवाह हतो, तेने भद्रानामनी स्त्री हती, धनपाळ,-धनदेव-धनगोप-धनरक्षित नामना चारपूत्रो श्रीज्ञाता हता, तेओने अनुक्रमे उज्झिता-भोगवती-रक्षिका अने रोहिणी नामनी स्त्रीओ हती. एक समये पोतानी पाकेटवय थवाथी विचार धर्मकथाले । आव्यो के-कोणजाणे क्यारे पक्कथवाथी सुकायेल पान(पत्र)नी जेम हुँ खरी पहुं अने पाछळ आ म्हारुं विशाळ कुटुम्ब व्यवस्था ॥४०॥ विनाना वहीवटो करीने हतविहत न थाय माटे सहु-सहुनी लायकात प्रमाणे नववधुओने कार्योनी वहें चण करीने व्यवस्था करुं जेथी म्हारी मेळवेली आबरु वगेरे सचवाय अने कुटुम्ब-परिवार दुःखी न थाय. आवो विचार करी पूत्रवधूमोनी परीक्षा करवा माटे ज्ञातिबंधुओने बोलावी योग्य सत्कार करीने भोजन आदि करावी पहेरामणी अर्पण करी. सहु स्वजनोनी समक्ष पुत्रवधूओने बोलावी अखण्ड डांगरना पांच पांच दाणाओ भारपूर्वक भलामण करी अर्पण कर्या, अने कयु के-हुं ज्यारे मागुं त्यारे मने आपजो. आवा ससराजीना वचनो श्रवण करी सहु सहुनी योग्यता प्रमाणे तेनो (डांगरना पांच दाणा सबंधनो) विचार कर्यो. प्रथम पूत्रवधूए ससराजी आपे छे माटे आ नजीवी चीज छे छतां लेवी जोइए एम धारी लीधा अने विचार करवा लागी के आटलो समारंभ करी ससराजी कंह अमूल्य वस्तु अर्पशे पण आ तेमने वृद्धावस्थामा शुं सुझ्यु के डांगरना दाणा आप्या, ससराजी | ज्यारे मांगशे त्यारे भरेला डांगरना कोठारमाथी आपी दइश एम करी ते दाणाने कचरामा फेंकी दीधा. बीजी पुत्रवधूए ससराजी वृद्ध छे, माननीय छे, घणा अनुभवी छे. आ तेमनी नानी शी पण प्रासादी छे, आने साचववानी जरुर नथी एम करी पोते वडीलनी प्रासादी धारी खाई गई. OSHOCABBAGESHDCHUCAUGUST 55453 ॥४०॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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