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________________ ॥ षष्ठ-सुम्बकाध्ययन-सारांशः॥ ते काले, ते समये चरमतीर्थकरप्रभु महावीरदेव एकदा विचरता विचरता राजगृहीनगरमां पधार्या, प्रभुने पधारेला जाणी श्रेणिक-18 राजा सपरिवार वंदना करवा आव्या अने धर्मदेशना श्रवण करी सहु स्व स्व स्थाने गया, ते समये प्रथम गणविभु श्रीगौतम-17 स्वामीजीए प्रभुने विनयपूर्वक वन्दना-नमस्कार करी पूछयु के-हे भगवन् ! जीवो भारे अने हलका शाथी थाय छे ! प्रभुए जणाव्यु | के-हे गौतम ! जेवी रीते कोइ माणस बराबर सुकायेला तुम्बडाने डाभना घासथी वीटी माटीनो लेप करी त्यारबाद तडके सुकवे, अने बरावर सुकाया बाद फरी तेना उपर डाभना घासथी वींटी माटीनो लेप करी बराबर सुकबे, एवी रीते यावत् आठवार लेपादि करवानुं करे त्यारबाद तेने अगाध ऊंडा पाणी विषे तरतु मेले तो ते तुम्बड्डु स्वाभाविक तरवा योग्य वजनवाळु होवा छतां घास अने माटीना लेपोना वजनथी डुबी जाय अर्थात् ते पाणीना तलीए जाय छे, तेज तुम्बडु पाणीमा रहेबाथी भीजाई माटी दूर थवाथी अने वीटळायेल धासना कोहवाइने दूर थवाथी जल उपर तरे छे अर्थात् ए स्व स्वभावथी तरवा मांडे छे. तेवी रीते हे गौतम ! संसारमा रहेला जीवो प्राणातिपातादि अढारपावस्थानकोथी उपार्जेला आठप्रकारना कर्मोना लेपथी भारे । थयेला अगाध संसारसमुद्रमा डुबे छे किन्तु धीमे धीमे धर्मना उत्तम अनुष्ठानोद्वारा आठे कर्मोने दूर करतो हलकापणाने प्राप्त थइ यावत् लोकना अप्रभागे-मोशे पहोंचे छे.
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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