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________________ UNCACICIACCOCOCCU अनुक्रमे गीतार्थ थया. पंथग विगेरे पांचसो शिष्यो साथ-प्रामानुग्राम विहार करता, ज्ञान-ध्यान-संयम वगेरेमा तत्पर रहेता अनेक भव्यजीवोने प्रतिबोधवा लाम्या. शुकाचार्य हजार शिष्योना परिवार साथे पुंडरीकगिरि पर पधारी अनशन स्वीकारी मोक्षे गया. शैलकराजर्षिनी शिथिलता-एक समय शैलकराजर्षिने अन्तप्रान्त-लखा-शुष्क-आहारआदिना कारणे दाहज्वरनो रोग उत्पन्न थयो, किन्तु शरीरविषे ममत्वरहित निष्पतिक्रमता गुणनी दृढता प्राप्त करेला तेओ कोई पण जातनी चिकित्सा करावता नथी. अनुक्रमे विचरता विचरता शैलकपुर विषे पधार्या, त्यां तेमनो सांसारिकपुत्र-मंडुकराजाने तेमना आगमननी खबर पडतां सपरिवार वन्दना करवा आव्यो. धर्मकथा श्रवण कर्या पछी शरीरना रोगनी चिकित्सा कराववानो आग्रह को अने तेनी वैयावच्चादिनो लाभ पोताने आपवा विनंति करी. शैलकाचार्ये तेनी विनंतिनो स्वीकार कयों अने शिष्योना परिवार सहित शैलकपुरनगरमां पधार्या अने यानशालामा उतर्या. राजाना बोलाववाथी आवेला चिकित्सकवैद्योए चिकित्सा करी अने दवा करी तेमा मद्यपान- अनुपान उपदेश्यु. भवितव्यताना योगे शैलकाचार्ये ते प्रमाणे करतां रोगनी शान्ति थई गई अने रोग जवाथी तेम राज्यना आहारादिथी ऋष्ट-पुष्ट थया पण तेमांथी | परिणाम ए आव्यु के तेओ मद्यपान अने राज्यना आहार वगेरेमा अति आसक्त थया तथा शिथिलविहारी थया, अर्थात् त्यांज स्थिरता करी. तेमनी शिथिलता अने आसक्ति जोई पंथकने गुरु भळावी, बाकीना शिष्यो विहार करी गया. पंथकमुनि अनन्य भक्तिपूर्वक गुरुनी साथे रह्या पण स्व आचारमा शिथिलता लाववा दीधी नहीं अने गुरुभक्तिमा तत्पर रखा. EMOCROCHECIROMCAESOCIENCES
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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