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नवाजी-16 १०० भीझाताधर्मकथाओं
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श्रीशैलकअध्ययन | सारांशः।
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में थावश्चापुत्र नामना जैनाचार्यनी पासे जैनधर्म स्वीकार्यो छे वगेरे विस्तृत बीना कही. शुकपरिव्राजके पोताने साथे लई त्यां जवानी मनोकामना दर्शाक तेथी शुकपरिव्राजकनी साथे सुदर्शनशेठ गया. शुकपरिव्राजके थावच्चापुत्रआचार्य साथे विविध प्रश्नोनी छणावटपूर्वक विचारणा करी अने शौचमूलक सांख्यमतनी असारता जाणी तुरत त्रिदंडकनो त्याग कर्यो, पंचमहाव्रत उच्चरी अणगार धर्मनो स्वीकार कर्यो अर्थात् तेओ जैनसाधु थया, गुरु पासे विनयपूर्वक अध्ययन आदि करी चौदपूर्वी थया अने गीतार्थपणे हजार शिष्यो साथे प्रामानुगाम विचरवा लाग्या.
-थावच्चापुत्रआचार्य घणा वर्षो सुधी भव्यजीवोने प्रतिबोध करी शत्रूजयगिरि उपर महिनानुं अनशन करी सर्व कर्मनो क्षय करी केवलज्ञान प्राप्त करी मोक्षे पधार्या.
एकदा शुकाचार्य हजार शिष्योना परिवार साथे विचरता विचरता शेलकपुर नगरमां सुभूमिभाग नामना उद्यानमां समोवसर्या. द्वादशव्रतधारक श्रमणोपासक शैलकराजा पांचसो मन्त्रीओ आदि परिवारसह वंदना अर्थे आव्या, देशना श्रवण करी भव नेर्वेद थवाथी मंडुकपूत्रने राज्य पर बेसाडी दीक्षा लेवानो विचार कर्यो, महेले आवी पंथक आदि पांचसो मन्त्रीने स्व अभिप्राय जणाव्यो अने पूछयु के तमारो शो अभिप्राय छे ! मन्त्रीओए पोते पण साथे जीवननी सफलता मेलववा चारित्रने अंगीकार करवानो अभिप्राय दर्शाव्यो. त्यारपछी राज्याधिकारीओद्वारा योग्य व्यवस्था करावी मंडुककुमारनो राज्याभिषेक करी बहोळा आडम्बरपूर्वक पांचसो मन्त्रीओ सहित शैलकराजाए शुकाचार्य पासे दीक्षा ग्रहण करी, गीतार्थोनी निश्रामां अग्यार अंग भणी बन्ने प्रकारनी शिक्षा प्राप्त करी
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