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धनान सुदर्शन नामनो मगरशेठ वसे छे. त्यां एक वखत शुकनामनो सांख्यमतनो परिव्राजक एकहजारना परिवार साथे आवेलो. तेनो उपदेश सांभळी सुदर्शनशेठे ते परिव्राजकनो शौचमूल धर्मने अंगीकार को हतो, ते सुदर्शनशेठ थावच्चापुत्रआचार्यने पधारेला जाणी तेमनी देशना सांभळवा गयो अने देशना श्रवण करी देशनान्ते विनीतभावे पूछवा लाग्यो के-हे भगवन् ! आफ्नो धर्म किं मूलक छे! थावच्चाआचार्ये तेना जवाबमा जणाव्यु के-विनयमूलक अमारो धर्म छे. ते विनय पण बे प्रकारनो छे, १ अगारविनय-२ अणगारविनय. १ अगारविनय एटले-पांचमहाव्रत, सात शिक्षात्रत, अग्यार उपासकपडिमाओ. २ अणगारविनय एटले-पांचमहाव्रत, अढार पापस्थानकोनो त्याग, दश प्रकारे पच्चक्खाण अने भिक्षुनी बार प्रतिमाओ. आ बे जातना विनयथी यावत् आठे जातिना कर्मो दूर करी लोकोत्तर-अनुपम मोक्षपदनी प्राप्ति थाय छे. थावच्चापुत्रआचार्ये-सुदर्शनशेठने पूछयु के हे महानुभाव ! तमारो धर्म किं मूलक छे ! सुदर्शनशेठे कयु के-अमारो धर्म शौचमूलक छे, एम कही पोताना धर्मने विस्तारपूर्वक वर्णव्यो, आ सांभळी थावच्चापुत्रआचार्ये तेने जणाव्यु के-हे सुदर्शन ! हुँ एक वात पूर्छ ! के-कोई माणस लोहीथी खरडायेल वस्त्रने लोहीथी धोवे तो शुं ते वन शुद्ध थाय ! सुदर्शने उत्तरमा जणाव्यु के-ना! ना! एतो कदी न बने ! त्यारे थावच्चापुत्रे कयु के तमारो धर्म अढारपापस्थानकोना परिहार विनानो कर्ममलथी खरडायल छे ते आत्माने केवी रीते शुद्ध करनारो थाय ! वगेरे विस्तारथी समजायं. आथी तुरत प्रतिबोध पामेला सुदर्शनशेठे जिनमतनी सद्दहणा स्वीकारी अने परमश्रावक बन्या अने जीवादितत्त्वने पाम्या.
सुदर्शनशेठे विनयमूलधर्म स्वीकार्यों छे तेवू जाणी शुकपरिव्राजक सपरिवार त्यां आव्यो अने थोडा शिष्यो सहित सुदर्शनशेठने त्यां गयो पण सुदर्शनशेठे तेनुं सन्मान न कर्यु. आजोई शुकपरिव्राजके पूछयु शेठ तमारी श्रद्धा केम फरी गई ! सुदर्शनशेठे उत्तरमां कछु
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