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नवाङ्गी
० पृ०
श्रीज्ञाता
धर्मकथाङ्गे
।। ३६ ।।
पर्वत
एवी द्वारका नगरीमां त्रणखंडना स्वामी श्रीकृष्णवासुदेव हता, तेओ-समुद्रविजय वगेरे दश दशाहों, बलदेव आदि पांच महान् वीरो, उग्रसेन बिगेरे सोलहजारराजाओ, प्रद्युम्न आदि साडान्रणक्रोडकुमारो, शांब आदि साठ हजारभडवीर योद्धाओ, वीरसेन वगेरे एकवीशहजारसुभटो, महासेन विगेरे छप्पनहजारबलवानलडवैयाओ, ऋक्मिणी विगेरे बत्रीशहजारराणीओ, अनंगसेना आदि हजारो विलासिनीओ वगेरे बृहत् परिवार साथै परम सुखने विलसी रह्या हता.
थावच्चात्रनुं वर्णन - तेज द्वारिकामां था वच्चा नामनी परम धनिक शेठाणी रहेती हती, तेणीने सुन्दररूपादिगुणोथी मनोहर थावचा नामनो पुत्र हतो. योग्य वय थये ते पुत्र कलाओ ग्रहण करी व्यवहारनिपुण थयो. हर्षित थयेली माताए एकज दिवसे ३२ कन्याओ साथै परणाव्यो. एक समय द्वारिका नगरीना सीमाप्रान्ते ईशानखूणे शोभता रैवताचल पर्वतनी समीपना नंदनवन विषे सूरप्रिययक्षना मन्दिरमां आवेला अशोकवृक्षनी नीचे चालीसहजारसाध्वी, तथा अढारहजारसाधुओथी परिवरेला श्रीनेमनाथप्रभु समवसर्या छे तेवं श्रवण करी हर्षान्वित थई परिवारसह आडम्बरपूर्वक वंदना करवा माटे कृष्ण महाराजा गया, प्रभुनी देशनामृतनुं पान कयुं. भावच्चापुत्र पण आवात सांभली सपरिवार प्रभु पासे वंदना करवा गयो अने देशनाने श्रवण करी हळुकर्मी एवा थावचाकुमार बैराग्यवासित बनी, मातानी अनुमति लेवा तुरत घरे आव्यो माताए - अनुकूल-प्रतिकूल वचनभंगी द्वारा घणी रीते समजाव्यो छतां पुननी दृढ वैराग्यता जाणी दीक्षा महोत्सव उजववानो पोतानो मनोरथ कह्यो, पुत्रे त्यां सुधी टकवानुं मौनपणे कबुल कर्यु. थावण्यामाता कृष्ण महाराजनी पासे जइ विशिष्ट मेटणु करी राजशाही ठाठपूर्वक दीक्षा आपवा माटे छत्र, चामर वगेरे योग्य सामग्रीनी मागणी करी. सम्यकूत्वथी शुद्ध हृदयी कृष्णनरेशे भरयौवनमां बत्रीशसुन्दरीओने तथा अनर्गल लक्ष्मी - वैभवने तृणनी जेम त्याग
परि० ५
पंचम
श्रीशैलका
ध्ययनसारांशः ।
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