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________________ करता थावण्यापुत्रनी वारंवार अनुमोदना करता तेनो दीक्षा महोत्सव पोतेज उजववा माटे उत्सुकता दर्शावी अने पोते चतुरंग सेना साथै हस्ति उपर बेसी थावच्चापुत्रने घेर आव्या अने थावच्यापुत्रनी दृढता तपासवा मांडी. श्रीकृष्णमहाराजे थावच्चापुत्रनी करेली परीक्षा - हे महानुभाव ! तुं मारी निश्रामां रहे, हुं तने तारे जोइए तेवी भोगसामग्री मेळवी आपुं ! तुं तारी इच्छाप्रमाणे भोग भोगव ! तने कोइ पीडा अथवा मननुं दुःख होय ते मने कछे, हुं ते दुःख दूर करूं । हुं उपरथी जता वायुने रोकवा समर्थ नथी बाकी बची वाते समर्थ लुं ! तुं दीक्षा न लेइश ! आना जवाबमां थावयवापुत्र कहेवा लाग्या के - हे राजन् ! मारा जीवनने अन्तकरवा आवता मृत्यु रोकी शको तथा शरीरना रूपनो विनाश करनारी जराने अटकावी शको तो तमारी निश्रामां तमे कहो छो ते प्रमाणे रहुं अने करूं. थावच्चापुत्रनो आबो स्पष्ट उत्तर श्रवणकरी कृष्णमहाराजे कधुं के - हे देवानुप्रिय ! अति बलवान् देव के दानव कोईनाथी पण आ निवारी शकवा शक्य नथी. फक्त पोताना कर्मना क्षयथीज ते अटकी शके ! आ प्रमाणे कही तेनो दृढ निश्चय जाणी हर्षित थया. थावच्चापुत्रो दीक्षामहोत्सव अने दीक्षा कृष्णमहाराजे आखी द्वारकानगरीमा उद्घोषणा करावी के-" थावखापुत्रनी साथे जे कोइने दीक्षा - संयम प्राप्त करवा उत्सुकता होय, इच्छा होय अने पोतानी पाछलना कुटुंबपरिवारना योगक्षेमनी अगवडताना लीधे पोतानी भावना सफलता न करी शकता होय ते सर्वे दीक्षाना मनोरथवाळाओने कृष्णनरेश तरफथी जणावाय छे के-तेओ सुखेथी दीक्षा अंगीकार करी आत्मकल्याण साधे ! तेमनी पाछलना तमाम परिवारनी मारा पोताना परिवारनी जेम आजीवनपर्यंत कृष्णमहाराजा सारसंभाल राखशे !!! " थावच्चापुत्रविषे
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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