________________
आवी तेनो पग पकडी लीधो अने तेनुं भक्षण करी गया अने पाछा लपाइ गया, फरी पण ज्यां तेणे बीजो पग काबो एटले तेनी दशा पूर्वनी जेम थई. यावत् एवी रीते पगो, ग्रीवा वगेरेनुं भक्षण करी गया. आम एक काचबानो नाश थयो ज्यारे बीजा काचबाए तो पोताना संकोचेला पग वगेरेने जरा पण फरकाव्या नहीं परन्तु शियालिआओ थाकीने चाली जाय त्यां सुधी पोताना अंगो स्थिर राख्या. शियालो ज्यारे चाली गयां त्यारे खूब शीघ्रताथी दोडी सरोवरमा प्रवेशी गयो अने दीर्घकाल सुघी सुखी थयो. उपसंहार
हे जंबू ! जे साधु-साध्वी संयम प्राप्त कर्या पछी पांचे इन्द्रियोने गोपवे नहिं, संयमित राखे नहिं, असंयममां प्रवर्तावे ते साधुसाध्वी प्रथम काचबानी जेम आ भवमां पण साधुपुरुषोने गर्हणीय-निंदणीय आचारवालो थई अनेक भवोमां रखडे छे अने दुःखी थाय छे, तेम जे साधु-साध्वी संयम प्राप्त कर्या पछी पांचे इन्द्रियोने गोपवे छे, संयमित राखे छे अने असंयममां प्रवर्तावता नथी अने जितेन्द्रिय थाय छे ते साधु-साध्वी आ भवमां पण साधुपुरुषोथी वखणाय छे, पूजनीय थाय छे तेम उत्तरोत्तर सुखसंपदाओने पामी मोक्षसुखने प्राप्त करे छे. आ रीतिए चोथा अध्ययननो सारांश समाप्त थाय छे.
-964
| पंचम - श्रीशैलकाध्ययन - सारांशः ।
कथाप्रारम्भ - श्रीकृष्णवासुदेव -
आ भारतवर्षनी शोभामां अनेरो वधारो करती, बारयोजन लांबी, नवयोजन पहोकी अने जेनी उत्तर पश्चिम दिशामां रैवताचल