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________________ नवाङ्गी ० पृ० भीज्ञाताधर्मकथाङ्गे ॥ ३४ ॥ एक प्रसंगे बन्ने मित्रोए मनोविनोद अर्थे देवदत्ता गणिका साथै नगर बहारना रमणीय बगीचामां स्वैरविहार करवानी, आनन्दविलास भोगववानी अभिलाषा थतां खानपाननी विपुल तैयारीओ करावी बगीचाओमां तंबू ठोकावी विशिष्ट प्रकारना वस्त्र आभरणो पहेरी देवदत्ता गणिकाने घेरे जइ देवदत्ताने आमन्त्रण कर्यु अने तेनी साथे अनेक मित्रमण्डलयुक्त खुब आडंबरपूर्वक ते चंपानगरीनी बहार इशानखूणे आवेल सुभूमिभाग नामना बगीचामां पहोंच्या. यथेच्छ रीते विविध विलासो करता वनना निकुंजो अने लताकुंजोमां फरतां फरतां ते बगीचाना उत्तर विभाग विषे रहेल एक घाडी झाडीमां प्रवेश्यां त्यां एक मयूरी देवदत्ता गणिका सह बन्नेने पोतानी बाजुमां आवता जोइ भयथी त्रास पामी पांखोने फफडावती नजीकना एक झाड उपर जइने बेसी अनिमिषदृष्टिए पोताना ताजा - तुरतमां प्रसवेला बे इंडाओने जोबा लागी. सार्थवाहना पुत्रो मयुरीनुं फफडाट सह उडी वृक्ष पर बेसवुं अने एकी नजरे एक बाजु मोरलीनुं जोवुं जोइ कुतूहलथी तपासतां सुन्दर-मनोहर रूपाळां मोरनां बे इंडां जोयां. पोताना क्रीडाना मोर बनाववानी लालचे परस्पर बने मित्रोए निर्णय कर्यो के आ इंडा आपणे कुकडीना इंडा मेगुं मेली दइशुं अने भद्रिक कुकड़ी पोतानां पारकां इंडां ओलख्या बिना सेवशे अने कालक्रमे सुन्दर बे मोर तैयार थशे अने आपणा अपूर्व मनोविनोदनुं साधन थशे. आ प्रमाणे बन्ने मित्रो परस्पर निश्चय करी पोताना सेवको पासे ते बन्ने इंडां लेवरावी कुकडीनां इंडां मेगां मूकावी दीघां. देवदत्ता गणिकाने घेर बोलावी यथायोग्य सत्कार करी तेनुं विसर्जन कर्यु, नोकरो द्वारा बन्ने इंडांओनी पूरती सारसंभाल करावी परन्तु तेमांना एक श्रेष्ठपुत्रे पोताना इंडाने सारो मोर आमांथी थशे के केम ? परिपक्क थयुं छे के केम ! आदि शंकाथी कलुषित हृदयथी ते इंडांने उंचुं नीचुं करे छे, आंगलीओथी गोदा-टकारो मारी जुवे छे, आम करतां एक दिवस अपक अवस्थामां ते इंड फूटी गयुं जेथी ते श्रेष्ठपुत्र ने हार्दिक परि० ५ तृतीय भीअण्ड काध्ययन सारांशः । ॥ ३४ ॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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