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________________ ** * OCRAACHAK लेवा आववानी भावना प्रगट करी. प्रभुए पण “जहा सुहं देवाणुप्पिया” कही, " श्रेयांसि बहुविनानि" सूचवी धर्मना कार्यमां ढील न ६] करवा जणाव्युं. घरे आवी मातापिताने वात करी अने संयम स्वीकारवा माटे अनुमति मांगी. धारिणीमाता तो आ सांभळी शोकथी विह्वल बनीने मूर्छा पामी बेभान थई गई. मूर्छा दूर थये मोहना आवेशथी अनेक प्रकारना रागोत्पादक वचनोथी मेधकुमारने संयमना बिचारोथी खसेडवा प्रयत्न कर्यो, किन्तु मेषकुमारे तो अस्थिमजानुगतपणे प्रगटेला धर्मरागथी आत्मकल्याण साधवानी तालावेलीभरी तमन्ना बतावनारा विविध उत्तरोथी पोतानो भवनिर्वेद सूचव्यो; त्यारबाद माताए संयमनी दुष्करता अने शरीरनी सुकुमालता वगेरे जणावी संयम न लेवा सचव्यु. मेधकुमारे स्वाधीनपणे संयममा आवता परीषहोपसर्गादि तथा सामाचारी पालननी दुःशक्यताओने सामी छातीए सामनो करवाथी, नरकादिमा पराधीनपणे अनन्तगुण भोगवी पडेल वेदनाओनी जेम निःसारपणुं नथी एम जणावी संयम स्वीकार माटेमो अटल-अणनम दृढ संकल्प जाहेर कर्यो. आथी निरूपाय थईने मातापिताए फक्त एक दिवसर्नु राज्य भोगवी लेवानो आग्रह कर्यो, एटले मातापितानुं मन प्रसन्न करवा खातर मेधकुमारे मौनपणाथी संमति आपी. तुरतज विपुल तैयारीपूर्वक धामधूमथी मेघकुमारनो राज्याभिषेक कर्यो. त्यारपछी सिंहासने बेठेल मेधकुमारने महाराजा श्रेणिक पूछे छे के-शी आज्ञा छे ! जवाबमां तुरतज ओघो-पात्रां मंगाववानुं अने हजामने बोलाववानी इच्छा दर्शावी. श्रेणिकराजाए आप्तपुरुषोद्वारा एक लाखना | मूल्यथी ओघो, एक लाखना मूल्यथी पात्रां मंगाव्या अने एक लाखना मूल्ये नावी-हजामने तेडाव्यो, अने विधि सहित हजाम पासे मस्तकना केशर्नु चार आंगुलनी शिखा वर्जीने मुंडन कराव्यु. देदीप्यमान-स्वर्ण-रजतना कलशोथी स्नानविधि करावी, शुद्ध महामूलां वखोर्नु परिधान करावी, एक हजार माणस उपाडे तेवी मनोरमा-शिबिका(पालखी) मां बेसाड्या. वर्णकमा वर्णित धामधूमपूर्वक * *
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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