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________________ नवाङ्गी०पू० | परिशिष्ट५-उत्थितअध्ययनसारांशः। भीज्ञाताधर्मकथाले ॥२९॥ प्रभुमहावीर पासे मेघकुमार-मातापिता स्वजन मेला सह हाजर थया. धारिणीमाताए विनयपूर्वक प्रभुने नमस्कार--वंदना करी विनंती करी के-अमारा प्राण करतां पण व्हाला, अनेक मनोरथोथी प्राप्त थयेल, काळजानी कोर सरखा आ मारा पुत्रने आपने शिष्य तरीके व्होरावु छु, तो आप कृपा करी स्वीकारो ! मेघकुमारे ईशान खूणे जई आभरणादि उतारी सर्प जेम कांचली उतारे तेम संसारनो मोह उतारवानो अभिनय को. आ समये मातानुं शोकना आवेशथी हृदय भराई आव्युं, अने विलापादि करवा मांडी. आ छतांये आत्मकल्याण साधी जीवनने उजालनार पुत्रने संयममार्गे विचरवानी शुभाशिष अने अप्रमत्तपणे सावध रहेबानी भलामणरूपे बे शब्दो कह्या. त्यारबाद मेघकुमारे प्रभु महावीरने त्रण प्रदक्षिणा करी अंजलि बांधी प्रार्थना करी के-हे प्रभु! आ संसार विषय कषाय अग्निथी व्याप्त छे. हे प्रभु! तेमाथी बचवा माटे मने संयम-दीक्षानु प्रदान करो ! स्वयं प्रभुए सामायिक उच्चरावी संयमनी महत्तानो तथा तेनी साचवणी वगेरेनो उपदेश करी मेघकुमारने अणगारधर्मनो पथिक बनाव्यो. मेषकुमारनु आर्तध्यान, अने प्रभुए करेलं तेना पूर्वमवर्नु वर्णन दीक्षापर्यायना अनुक्रमे मेघकुमारनो संथारो साधुओना जवा-आववाना प्रवेशद्वार पर आव्यो, आथी रात्रिए वाचना-पृच्छनादि अने अने ठल्ले मात्रादि माटे जता आवता साधुमहात्माओना पादरजथी संथारो भराई गयो अने रात्रिए ते महात्माओना पगनी ठोकरो वागी, अंधाराने लई शरीरना अवयवो पर पण पग लाग्या. आ हेतुए सुंवाली मखमलनी पथारी पर आलोटेल होवाथी शरीरनी अति कोमलताना कारणे मेघकुमारने क्षणवार पण निद्रा न आवी, अने नवदीक्षित होवाना कारणे आध्याने चढी दुर्ध्यान थयु के-'अहो ! GEE ROCIAॐॐ NAGAUR है मम । तेमाया महावीरने मार्ग विचरवाना । J॥२९॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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