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नवाङ्गी
० पृ०
श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गे
॥ ११५ ॥
वेह० अभिसिंचति जाव राया विहरति । तते णं से सेलए मंडुयं रायं आपुच्छह, तते णं से मंडुए राया कोटुंबिय पुरिसे० एवं वदासी- खिप्पामेव सेलगपुरं नगरं आसित जाव गंधवहिभूतं करेह य, कारवेह य २, एवमाणत्तियं पञ्चपिणह; तते णं से मंडुए दोपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २, एवं वदासी - खिप्पामेव सेलगस्स रन्नो महत्थं जाव निक्खमणाभिसेयं जहेव मेहस्स तहेव णवरं पउमावतीदेवी अग्गकैसे पडिच्छति सव्वेवि पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहंति, अवसेसं तहेव जाव सामातियमातियातिं एक्कारस अंगाई अहिज्जतिर, बहूहिं चउत्थ जाव विहरति तए णं से सुए सेलयस्स अणगारस्स ताई पंथयपामोक्खातिं पंच अणगारसयाई सीसत्ताए वियरति, तते णं से सुए अन्नया कयाई सेलगपुराओ नगराओ सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमतिर त्ता, बहिया जणवयविहारं विहरति; तते णं से सुए अणगारे अन्नया कयाई तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे, पुण्वाणुपुर्वि चरमाणे, गामाणुगामं विहरमाणे, जेणेव पोंडरीए पव्वए जाव सिद्धे ॥ सूत्रम् - ६२ ॥
५ - श्रीशैलकाध्य०
शैलक
दीक्षादि
वर्णनम् ।
एवमीर्या समित्यादिगुण योगेनेति । 'पंचाणुवइयं' - इह यावत्करणात् एवं दृश्यं, 'सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पवित्र अहासु देवाणुपिया !, मा पडिवधं काहिसि । 'तए णं से सेलए राया, थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए पंचाणुवयं जाव उवसंपअर, तए णं से सेलए राया समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे' इह यावत्करणादिदं दृश्यं, 'उवलद्धपुणपावे आसव संवरनिअर किरिया हिगरण बंध मोक्खकुसले'- क्रिया- कायिकयादिका, अधिकरण- खड्ग निर्वर्त्तनादि ॥ ११५ ॥