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________________ नवाङ्गीवृ०० श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गे १-श्रीउत्क्षिप्ताध्य. मेषकुमारस्य गतिः। 1८१॥ RAKAASARAGARH भत्तपाणपडियाइक्वित्ते अणुपुव्वेणं कालगए, एस णं देवाणुप्पिया मेहस्स अणगारस्त आयारभंडए ।। सूत्रम्-३५ ॥ भंतेत्ति भगवं गोतमे समणं ३, उ वंदति नमंसति २त्ता एवं वदासी-एवं खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी मेहे णाम अणगारे से णं भंते !, मेहे अणगारे कालमासे कालं किचा, कहिं गए? कहिं उववन्ने ?, गोतमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं-वयासी एवं खलु गोयमा!, मम अंतेवासी मेहे णाम अणगारे पगतिभद्दए जाव विणीए से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्यातिं एक्कारस अंगाति अहिज्जति २, बारस भिक्खुपडिमाओ, गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं कारणं, फासेत्ता जाव किदृत्ता; मए अब्भणुनाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेइ २, तहारूवेहिं जाव विउलं पब्वयं दुरूहति २, दभसंथारगं संथरति २, दम्भसंथारोवगए सयमेव पंच महव्वए उच्चारेइ, बारस वासाति सामण्णपरिगाय पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झुसित्ता, सहि भत्तातिं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिकते, उद्धियसल्ले, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा; उद्धं चंदिमसूरगहगणणक्खत्ततारारूवाणं बहुई जोयणाई, बहई जोयणसयाई, बहूइं जोयणसहस्साइं, बहुइं जोयणसयसहस्साई, बहूइ जोयण. कोडीओ, बहूइ जोयणकोडाकोडीओ; उ8 दूरं उप्पइत्ता सोहंमी-साण-सणंकुमार-माहिद-बंभ-लं-लगमहासुक-सहस्सारा-णय-पाणया-रण-च्चुते, तिणि य अट्ठारसुत्तरे गेवेजविमाणावाससए वीइवइत्ता, .१ गोयभाएहि स० अ। CIAFIRST पहा॥८१
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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