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________________ पूर्वना वृद्धपुरुषो प्रत्ये नवाशी वृत्तिकारने अतिशय बहुमान हतुं, अने तेथीज पंचमाङ्ग श्रीविवाहपन्नचिनी वृचिना प्रारम्भमां हृदयना भाव ध्वनित करे छे - " एतट्टीका चूर्णि जीवाभिगमादिवृत्तिलेशां च संयोज्य पञ्चमानं विवृणोमि विशेषतः किञ्चित्० " इत्यादि । आ रीतिए ग्रंथना वृत्तिकारने ओळखवाथी ग्रंथस्थित भावोने जाणतां हृदयना हार्दिक बहुमान वृद्धि पामे छे. ग्रन्थसामग्रीना प्रकारो आ ग्रन्थनी सर्व सामग्रीओ कथास्वरूपे छे, तेथी कथाना प्रकारो समजवानी अत्र आवश्यकता छे; माटे ते प्रकारोने अत्र विचारीए । आ चराचर विश्वमां मुख्यतः कथाओ ने प्रकारनी प्रवर्ते छे, एक बनेला बनावोरूप कथाओ प्रवर्ते छे, अने बीजी कल्पनाओनी जमावटरूपे कथाओ प्रवर्त्ते छे. आथीज- अनुक्रमे चरित अने कल्पित ए वे विभागमां कथाओ बर्हेचायली होय छे; तेवी रीते शास्त्रोमां. पण ते बे विभागरूपे कथाओ आवे छे. कल्पित कथाओ रमूज साथे बोध आपे छे. जेम-श्री उत्तराध्ययनना द्रुमपत्रीयअध्ययननो भाव विचारीए तो साक्षररत्न - डाह्याभाइ धोळशाजीना वचनोमां जणावाय छे के "पीपल पान खरंत हसती कुंपलीयां मुज वीती तुज वीतशे धीरी बापुडीयां " आज भावने अनुसरतां उत्तराध्ययनना ते अध्ययनना पथमां " जह तुम्मे " विगेरे पदो छे ते तेने पुष्ट करे छे. आवी घटनाओ द्वारा उपदेश अपाय छे, छतां ते कथा कल्पित छे, कारण के पांदडुं शीखामण आपे अने कुंपलोनुं इस थाय ए बुद्धिने असंगत छे, छतां कथाना भावने समजीए तो घटना युक्तियुक्त छे. आवां आवां अनेक कल्पित दृष्टान्तो शास्त्रोमां आवे छे. आ प्रसिद्ध थता ग्रंथमां प्रथम श्रुतस्कन्धना ओगणीस अध्ययनोमां चरितो अने कल्पितोने अनुरूप ज्ञातानि - दृष्टान्तो आवे छे. चरित्रो बनेला बनावो उपर आधार राखे छे. बनेलो बनाव वांचनकाले अगर श्रवणकाले चमत्कारिक लागे अगर
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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