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जीववाना आचारोनुं सुन्दर रीतिए दिग्दर्शन कराव्युं छे. शासनमान्य- आचारोथी वासित थयेलो आत्मा बांधेला कर्मना स्वरूपने जाणीने ते कर्मोने जडमूलथी तोडवा कटिबद्ध थाय तेथीज सूत्रकार, श्री सूत्रकृतांगना प्रथम अध्ययनना प्रथम उद्देशानुं प्रथम सूत्र आ प्रमाणे जणावे छे. ' बुज्झिज्जइ ' ' तिउज्जइ' इत्यादि पदोद्वारा कर्मबंधनना स्वरूपने, नवा आवतां कर्मोंना स्वरूपने, अने तोडवाना स्वरूप जाणीने नाश करवा उद्यमवन्त थाय छतां विविध इतरदर्शनकारोनी विविध मान्यताओथी व्यामोहित न थाय ते मांटे स्वसमयना सिद्धान्तोथी आत्माने केवो लाभ छे !, अने परसमयना सिद्धान्तोने तथा आचारोने मानवाथी - आचरवाथी केटलं नुकशान छे !, ते सम्बन्धमां विस्तारथी समजावीने आ सूत्रकृतांगमां ठाम ठाम शासनमान्य श्रद्धा-प्रतीति- रुचिने अतीव द्रढीभूत बनावत्रा माटेना बे श्रुतस्कन्धो २३ अध्ययनो अनेकभावथी भरपूर भरेला छे. श्री आचाराङ्गना सूत्रोनुं सुधास्वादन करीने, आचारथी वास्तविकरीतिए वासित थइने, अने श्री सूत्रकृताङ्गना अध्ययनोना सूत्रोनुं अमृतपान करीने श्रद्धा दृढीभूत बनेली होय तेवाओनें पण शासनमान्य पदार्थोना वर्गीकरण समजवानी अवश्यमेव जरुर छे. वर्गीकरण एटले एकत्ववाची, द्वित्ववाची विगेरे पदार्थो केटला छे !, अने कया कया छे, ते समजवाथी बुद्धिवैभव विशालताने पामे छे. कोई पुस्तकालयमां जाओ, परन्तु वर्गीकरणरूपे ते प्रन्थोनी नोंध मले तो आर्थओना उत्साहमां वृद्धि थाय छे. जेम कोई अर्थ पूछे के न्याय विभागना प्राथमिक कक्षाना, मध्यमकक्षाना अने अन्तिमकक्षाना ग्रन्थो तमारा पुस्तकालयमां केटला छे !, जो वर्गीकरणरीतिए नोंध राखी होय तो ( विषयवार प्रन्थोनी नोंघ राखी होय तो ) तुरत नोंघपोथी आगल धरे छे, अने ते अवसरे मागनारने संतोष थाय छे; तेवी रीते आ शासनमा विषयवार एक संख्यावाचक बे, त्रण एम अनुक्रमे दश संख्या सुघीना पदार्थोंना समुच्चय तरीके त्रीजुं अंग स्थानांग ठाणांगं नामना अंगमां अने वधु संख्याना वर्गीकरणरूपे