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नवाङ्गी
१० पृ०
श्रीज्ञाता
धर्मकथाङ्गे
।। ५५ ।।
करेली नोंध चोथा श्रीसमवायांगसूत्रमां आवे छे. आ चार अंगनो निष्णात थया पछी साथे दश वर्षनो दीक्षापर्याय थयो होय अने योगोद्वहनकर्या होय तेने विवाहपत्ति ( पू. सुधर्मास्वामीजीए आपेल नाम ) के जेनुं नाम चतुर्विधसंघे श्रीभगवतीजी राखेल छे, तेने अंगने भणवा - भणाववानी योग्यता प्राप्त थाय छे. कारण के चारे अनुयोगने अनुसरता अनेकविध प्रसंगो प्रश्नोत्तररूपे आ पंचम (अंगमां ) भर्या छे, अने आ पांचमा अंगना विधि विधान साथै योगोद्वहनपूर्वक अभ्यासी बननारने सर्व श्रुत भणवा भणाववानी आज्ञा अपाय छे, तेथी तेनुं ( भगवतीजीनुं ) अतीव महार्द्धकपणुं छे. आ रीतिए अंगोनी अनुक्रम रचना अने तेओनो अनुस्यूतसम्बन्ध विचारवाथी समजाशे के पांचमा अंगने भण्या पछी जैनशासनना सिद्धान्तो जेना जीवनमां पची गया होय तेवा महापुरुषोने लाभ केवो थाय छे ! अने तेनो विरोध करवाथी केतुं नुकशान थाय छे !, ते जाणवानी जरुर छे. आ शासनना वास्तविक - ऐतिहासिक - प्रसंगोने जणावनार होय तो आ छहूं अंग - श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग मुख्य छे. आ रीतिए प्रथम श्री आचारांगथी छट्ठा श्रीज्ञाताधर्मकथांग सुधीना अनुस्यूत-संबंधने अत्र प्रासंगिक जणाव्यो.
आ ग्रन्थनुं नाम अने सामग्रीओ
पञ्चमगणधर भगवन्त श्रीसुधर्मास्वामीजीए पांचे अंगनां नामो ते ते अंगमां भरेला भव्य भावने अनुसरीने यथार्थ आपेलां छे, तेवी रीते तेओश्रीए आ छट्ठा अंगनुं नाम श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग तरीके आपलं छे. ज्ञाताशब्दनी वृत्ति लखतां श्रीहरिभद्रसूरीश्वरजी श्रीदशवैकालिकमां जणावे छे - ' ज्ञायतेऽस्मिन् अतिदान्तिकोऽर्थ ' इति आथी तेनुं नाम यथार्थ गुणनिष्पन छे.
श्री जम्बूस्वामी पंचमगणधर भगवन्तने पूछे के के-हे भगवंत ! ज्ञाताधर्मकथाङ्गमां क्या भावो छे !, एटले ते ज्ञाताधर्मकथाक्रमां
प्रस्तावना ।
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