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प्रस्तावना
संपदाना मालीक ।
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नवाङ्गी-पटाद्वादशांगी स्चवानो प्रारम्भ कइ रीते करे छे! ते पूर्व विचारी गया छीए. अने तेथी त्रिपदी पामीने तेओश्री अंगोनी रचना करवाना १० वृ०
अवसरे अनुक्रमे आचारांग-सूत्रकृताङ्ग-स्थानाङ्ग-समवायाङ्ग-भगवतीजी अने छट्टे अंग श्रीज्ञाताधर्मकथाननी रचना करे छे. शासननी भीज्ञाता-18
मर्यादा समजनारे समजवू जोइए के सूत्र सिवायना भाष्य-नियुक्ति-चूर्णि-वृत्ति विगेरे वर्तती सकलश्रुतसंपदाना मालीक तेओश्री धर्मकथा) (पञ्चम गणधर भगवन्त ) हता अने छे, कारणके अर्थथी अने सूत्रथी-आत्मागम, अनन्तरामम अने परम्परागमना भेदोने विवेक-
पूर्वक समजनारने उपरनी बीना समजाववी पडे तेम नथी. " सर्व श्रुतसम्पदाना मालीक पश्चम गणधर भगवन् श्री सुधर्मास्वामी हता, ॥५४॥
अने छे" आ वातने स्मृतिपथमांथी कोई विसरी जाय नहीं अने ते स्मरण जागतुं, जीवतुं रहे ते माटे चौमासी-सांवत्सरिक प्रतिक्रमणमां त्रीजा खामणा प्रसने, चतुर्विधसंघ ते प्रसंगने अवश्यमेव याद करे छे. एटले अक्खरं वा, पयं बा, गाहं वा, सिलोगं वा इत्यादि पदोद्वारा स्पष्टपणे सूचवाय छे. आ शासननी परम्परामां हमने अक्षर के पद, गाथा के श्लोक विगेरे जे मळ्युं छे, ते तमने अपाय छे, अने अपाती चीजमां अमारी मालीकी नथी पण ते पूर्व पुण्य पुरुषोनी छे. आथी समजनारने हवे स्पष्ट थशे के चौदपूर्वधरनी के दशपूर्वधरनी रचनाओ होय, नियुक्तिकारनी के भाष्यकारनी रचनाओ होय, चूर्णिकारनी के वृत्तिकारोनी रचनाओ होय, सूरिपुन्दरोनी के वाचकवर्योनी रचनाओ होय, प्रकरणकारोनी के संग्रहकारोनी रचनाओ होय तो पण दरेके दरेक रचनाओनी परम्पराना उंडाणने तपासीए तो शासनमान्य-सर्वश्रुत सम्पदाना मालीक श्रीसुधर्मास्वामी हता, छे, अने आ शासननी परिसमाप्ति पर्यन्त तेओश्रीज रहेशे. अंबोबो अनुस्यूत सम्बन्ध_ शासनमान्य श्रीआचाराङ्गमां अर्थिओ माटे पांच आचारोनु, तेना मेदोनु, अने श्रमणपणुं पामेला श्रमणभगवन्तोने श्रमणजीवन
SARANAS