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________________ अग्रेसर ब्राह्मण पोताना परिवार साथ दीक्षित थयेला ते सुधर्मास्वामिजी गणधरपदे स्थित थाय छे, गणधरपदे स्थित थयेला गणधर भगवन्त पूछे छे के - हे भयवं ! किं तवं ! ( आ प्रश्नने प्रदक्षिणा दई वन्दन नमस्कार करीने नतमस्तके पूछे छे ) अने त्रण वखत आ प्रश्न उपरनी रीतिए पूछे छे अने भगवान् श्रीमुखे अनुक्रमे उपनेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा प्रत्युत्तररूपे कथन करे छे. सर्वज्ञ पासेथी समाधानना सुधास्वरूपे आ त्रण पदो बीजरूपे पामीने बीजबुद्धि अने कोष्ठबुद्धिना धणी द्वादशाङ्गीनी रचना करे छे. रचनानी आदिमां " सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं " अने अन्तमां " तिवेत्ति " ए पदो मूकीने गणधरभगवन्तो पोतानी लघुताने प्रतिपादन करे छे, कारणके- ज्यारे पोताना शिष्यने सूत्रसंदर्भने आपे छे त्यारे हुं तने जणावुं छु एम कहता नथी परन्तु भगवान् महावीर पासेथी म्हें सांभळ्युं छे तेज तने हुं अनुवादरूप जणावुं हुं. आथी हुं कहेतो नथी, म्हारा घरनुं कहेतो नथी, ते मनोधडत कल्पनाओ पण ठालवतो नथी; ए उपरना प्रथम जणावेला " सुयंमे० " इत्यादि पदोथी ध्वनित थाय छे, अने " तिबेमि ” पदोथी स्वमनीषिकानो भारपूर्वक परिहार सूचवे छे. अध्ययनो आदिमां अगर सूत्रोनी समाप्तिमां उपर जणावेलां पदोन होय तो पण अवश्यमेव उपर जणावेलां ते ते पदो छेज, एम वांचकोर अने विचारकोए तेम अभ्यासकोए अवश्यमेव समजी लेवुंज जोइए एवी आ शासननी मर्यादा छे. आ मर्यादा अनुसरनाराओने प्रातःस्मरणीय पूज्य श्रीतीर्थंकरोए कथन करेला अर्थनुं अमृतास्वादन अने पूज्य गणधर भगवन्तना सूत्रोनुं सुधास्वादन स्पष्टपणे निरंतर थयुं छे थाय छे, अने थशे ए निःशंक बीना छे. श्रुतसंपदाना मालीक वर्तमान जैनशासनमां वर्तती द्वादशाङ्गीना रचयिता पञ्चम गणधर भगवन्त श्रीसुधर्मास्वामीजी हता, अने छे. पू. गणधर भगवन्तो
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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